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Saloni pad

मुनासिब समझो तो सिर्फ इतना बता दो
मेरा दिल आज बेचैन बहुत है, कहीं तुम उदास तो नहीं हो.....मेरे  कान्हा

कुंजन कुंजन ढूँढ फिरी
प्रीतम नज़र न आए सखी
मन बेचैन भया तड़पुं पूरी रैन सखी

रात ढली
बेताबी बढ़ी
मन बेचैन
प्रीतम नज़र न आए सखी

याद किया तब प्रिया जु को
लगाई ऐसी विरह पुकार
राधे का नाम लेते ही फिर
पधारे मेरे नटवरलाल

एक तरंग इस विरहन के मुख पर
लहरा गई सौ सौ बार
बलिहारी जाऊँ ऐसे पिया पे
दिखते ही जिसने भुला दिए
जन्मों के दुख संताप
देखत देखत छवि प्यारे की
भूल गई सगरा संसार

प्यारे के मुख पर भी आज थी छाई
एक मनमोहक अधछुपी सी प्यास
ऐसी अद्भुत प्रेम की छाप
ज्यों आज पिया देत मोहे कुछ
खुद सा प्यारा प्यारा उपहार

इससे पहले कि कुछ कहते
थाम लिया सजन ने
इस दासिन का हाथ
मैं भई पगली भागी पिया संग
पहुँची निकुंज गलिन में
जहाँ विराजे मेरी सरकार

देख छटा प्यारी जु की
मैं तो भई बेहाल
भूल ही गई कि
प्यारेमोहन भी हैं संग में
ऐसी पगली
का ये हाल

इससे पहले कि सुध बुध खोती
देख प्रिया का लाल हार श्रृंगार
सखीयों ने दे दई
वेणु गुंथन माल
मेरे हाथ

ना कुछ समझ पाई री सखी
बैठ वहीं पिरो दई
इक इक कली में
असुवन की धार
क्षण में ही दिखे मोहन
जैसे पुकारियो मोरा नाम

'हर्षिणी'सुन खिंच गई खुद ही
किया पिया ने खुद प्रिया जु का वेणु श्रृंगार
मैं पगली खड़ी वहीं
लेकर आँखों में गुल-ए-गुलज़ार
हाथ पिया के थमा दिया तब
दासिन ने वो हार
सजी जिससे फिर राधारानी
सुंदर छवि ऐसी जैसी
रस में डूबादे सगरा संसार

इतने में पिया ने निहारा प्रिया को
और प्रेम में डूबी इन अखियों ने किए
मौन ही मौन रह कई मनुहार

सब सखियन संग सेवा में बैठी
रही प्रियाप्रीतम को निहार
बह सी गई जब छिड़ी दोनों से
प्रेम रस की अनकही सी धार

झुक गए नैना
सह न सकी
अखियाँ मेरी
वो अद्भुत प्रेम प्रहार

कुछ ही क्षण में
हुए युगलवर अखियों से ओझल
फिर शुरू हुआ
वही विरह संताप

मुं संग सारी सखियाँ भी
बहाने लगी अश्रु धार
क्यों छोड़ गए फिर से
तनहा हम दासिन को
भुला गए हमको
दे गए इक विरह अपार
विरह अपार
विरह अपार

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