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गहवर वन

Radhaaaगहवरवनश्री राधा कृष्ण लीला का मुख्य स्थल है. लताओं व कुंजो से सजे हुए गहवरवन की अपनी ही शोभा है .ये वन श्री राधा रानी को अत्यन्त प्रिय हैं.उनको भी नमस्कार करना चाहिए.गहवरवन प्रार्थना मन्त्र-"गहवरा ख्याय रम्याय कृष्ण लीला विधायिनेगोपी रमन सौख्याय वनाये च नमो नम:""हे गहवरवन रम्य श्री कृष्ण लीला विधान के स्थान,आपको नमस्कार. आप गोपी रमण श्री कृष्ण के सुख के लिए हैं. ये वो गहवरवन है, जहाँ पहुँचकर श्री कृष्ण अपने को कृतार्थ मानने लग गये. आज से पहले श्री कृष्ण ने अपने को कृतार्थ नहीं माना था जबकि बहुत अवतार हुए, बहुत सी लीलाएं हुईं, बहुत से उनके भक्त हुए. लेकिन गहवरवन बरसाना पहुँचकर अपने को कृतार्थ मानते हैं.ऐसे गहवरवन बरसाना की रज को नमस्कार है जहाँ वृषभानु की कन्या खेलती हैं.प्रसंग १. -सबेरे-सबेरे दोनों राधा माधव गहवरवन में शयन से उठे हैं. गहवरवन में ऐसे हवा चल रही है कि श्याम सुंदर का पटका और श्री जी की चुनरी दोनों उड़ने लग गये हैं . जब श्री जी की चुनरी उड़ी तो सब मोरों ने देखा और उड़-उड़ के वहां पहुँच गये.दर्शन करने के लिए.जब मोर आ गये तो श्री जी उनको नचा रही हैं.आँखों के इशारों से नचा रही हैं. जब इधर देखती हैं तो मोर इधर नाचते हैं और जब उधर देखती हैं तो मोर उधर नाचते हैं. आँखों से नचा रही हैं मोरो को. मोर पंख खोलकर नाचने लग जाते हैं. जब मोर पंख खोलकर नाचने लग जाते हैं तो श्री जी ताली बजाने लग जाती हैं कि इस ताल पे नाचो. तो जब मोर ऐसे नाचने लग जाते हैं तो श्री जी भी नाचने लग जाती हैं.एक बार श्री राधा जी मान करके बैठी थीं. जब बहुत मान करने पर भी उनका मान नहीं छूटा तो श्री श्याम सुंदर ने एक कौतुक रचा . प्रिया जी के सामने ही कुछ दूरी पर मयूर वेष बनाकर नृत्य करने लगे. नृत्य करते - करते वो कभी राधा रानी के पास चले जाते और कभी दूर से राधा रानी को रिझाते.राधा रानी की जब नाचते हुए पैजनी बजी तो श्याम सुंदर ने मुरली की तान मिला लिया.प्रसंग २. - एक दिन राधिका रानी गहवरवन में खेल रही थीं और श्री कृष्ण उनको ढूँढ़ते-ढूँढ़तेनन्दगाँव से चले.जब यहाँ पहुँचते हैं तो ललिता जी कहती हैं कि हे नन्द लाल तुम कैसे आये यहाँ ? श्याम सुंदर कहते हैं कि ललिता जी श्री राधा रानी के दर्शन के लिये आये हैं. ललिता जी कहती हैं कि अभी तुमको दर्शन तो नहीं मिलेंगे क्योंकि किशोरी जी अभी महल से चली नहीं हैं.तो श्याम सुंदर जी कहते हैं कि आप लोगों ने हमारा नाम चोर रखा है तो चोर से चोरी नहीं चलती है ललिता जी तुम समझ रही हो कि हम तुम्हारी चोरी समझ नहीं रहे.ललिता जी पूछती हैं कि हमारी चोरी क्या है ? श्री कृष्ण बोले अरे लाड़ली जी तो आ रही हैं . बोलीं , कैसे पता? कृष्ण बोले कि किशोरी जी जब आती हैं तो उनके शरीर की महक चारों ओर फैल जाती है. ये सुगन्ध बता देती है कि वो आ रही हैं. तुम नहीं छिपा सकती हो राधिका रानी को. अरे चाँद को कोई क्या हाथ से ढक सकता है ? हम तुम्हारीचोरी जानते हैं. वहाँ कहा गया है कि श्री जी खेलती आ रही हैं अपनी सखियों की साथ.बरसाने के बिना ब्रह्म अपूर्ण रहता है. गहवरवन कोई बड़ा वन नहीं है. बहुत ही छोटा सा वन है. पर ये है कैसा ?ये दोनों राधा माधव के मन को हरन कर लेता है . इसमें इतनी आकर्षण शक्ति क्यों है ? और भी तो वन हैं वृन्दावनमें. स्वयं राधा रानी ने अपने हाथों से इस वन को बनाया है. सब लता, पताओं को अपने हाथों से लगाया है और इसे विलास रस से सींचा है. इसीलिए ये गहवरवन बहुत ही महत्वपूर्ण वन है क्योंकि ऐसा सौभाग्य किसी भी ओर ब्रज के वनको नहीं मिला जो गहवरवन को मिला. राधारानी ने इसे अपने हाथों से सजाया है और इसमें दोनों नित्यलीला करते हैं."जय जय श्री राधे"

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