युगल ज्योति और ब्रह्म ज्योति --
जय जय श्यामाश्याम ।
राधामाधव के चरण कमलों से निस्यंदिति परम् सुशीतल मकरन्द निकलता है यदि इसका आस्वादन हो जाए तो आनुषन्गिक भाव से (अपने आप) इस भव ज्वाला की पराशांति अवश्य हो जायेगी । नीली पीली (हमारे युगल) ब्रह्म ज्योति से ज्यादा प्रभावशाली हैं जिसकी रस की दृष्टि से तुलना नीचे दी दी जा रही है -
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ब्रह्म ज्योति - निर्विशेष , निराकार
युगल ज्योति - 'किशोरम्' अनन्त सौंदर्य-माधुर्य का कल्लोलित (तरंग युक्त) सिंधु ।
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ब्रह्म ज्योति - आनन्द देने वाली है परमानन्द देने वाली नहीँ है । जो अपने को एकाकार कर सके तो वह आनन्द स्वरूप हो जाता है। भव ज्वाला समाप्त हो जाती है ।
युगल ज्योति - हमारी उपास्य ज्योतिर्द्वय 'सदानन्दम्' आनन्द की ही घनीभूत प्रतिमाएं है । सच्चिदानन्द और प्रेमरस की घनीभूत मूर्तियां परमानन्दमया मेरी इन आनन्द ज्योतियों के दर्शन कर इनके साथ मिलकर आनन्द स्वरूपत्व प्राप्त करने की वासना नहीँ जगती । मैं तो इन दोनों (परम् मधुर नील पीत ज्योतिर्द्वयं) के दर्शन करके, इनके चरणों में लुण्ठित होने की इच्छा होती है । उनके अनन्त सौंदर्य-माधुर्य रस के आस्वादन की इच्छा होती है । तब भव ज्वाला की और चिंता नहीँ रहती है । वह तो अपने आप शांत हो जायेगी इनके चरण कमलों से निस्यन्दित मकरन्द की सुशीतलता से
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ब्रह्म ज्योति - निष्क्रियं निष्कलं शांत है
युगल ज्योति - इस तृषित की युगल ज्योतिर्द्वय लीला विनोदी है और क्रियाशील है , मेरी लीला विनोदि ज्योतिर्युगल की लीला का मधुरातिमधुर स्थान वृन्दावन का नवलता-निकुँज भवन है ।
सत्यजीत "तृषित" । जय जय श्यामाश्याम ।
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