रसिक रवनी रसद रस-रासि,
रस-सींवा रस-सागरी, रस निकुंज सुख-पुंज वरषत ।
जय जय श्यामाश्याम चरण द्वय में तृषित नमन । श्री प्रिया जी के लिए श्री सेवक जी कहते है कि -
रस की ज्ञाता , रस रूप , रसास्वादक सुंदरी अथवा परम् रसिक श्री लाल जी के तन मन और प्राणों में खेलने वाली अथवा परम् रस कौतुकी श्री लाल जी के संग कौतुक करने वाली , उन्हें क्रीड़ामय मृग बनाने वाली , रस देने वाली रस की राशि , रस की सीवाँ और रस की सागरी (रस की गम्भीर स्थली) श्री प्रिया जी रसमय निकुंजो में रस की वर्षा करती हैं ।
रस-निधि सुविधि रसज्ञ रस, रेख रीति रस प्रीति हरषत ।
ऐसे ही रस की भली भाँति ज्ञाता, रसदात्री की रस वर्षा को भली भाँति धारण करने वाले, रस-कोष ,रस-समुद्र, रसरीति और प्रीति की अवधि श्रीलाल जी उन रस निकुंजों में यह सोचकर परम् प्रसन्न होते है कि मुझे ऐसी प्रीति-प्रतिमा का प्रीति पात्र होने का सौभाग्य प्राप्त है । क्रमशः ....
- जय जय श्यामाश्याम ।।
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