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रस स्वामिनी तोसे ही तृषित लगावें आस

रस स्वामिनी तोसे ही तृषित लगावें आस ।

सबल को बल जगत हुयो , मैं अबलनि सुकुमारी तेरे बल ही री ।

सनाथ को नाथ जग होवें , अनाथ के नाथ की नाथ भानु दुलारी ।

पूण्य करतो भुवन फल पातों , मो पतित की तो एकहु पावन प्यारी ।

साधन-विधि संग कछु उछाल भरे न , तू ही नित निभावन वारि ।

पर होवे उड़तो व्याध विलोकत , परहीन की तू ही राखीवे हारी ।।

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