श्यामाश्याम दरश प्यासी अंखियाँ
श्याम की सताती कटारी अंखियाँ
तिरक तिरछ भावनी निरुपम अंखियाँ
करत टौना होवत गौणा , हा श्यामा अरी बेरन अँखियाँ
रहत मगन जब इह लोकन में सदा अखियाँ
हाय री कानन में कानुडा संग कबहूं उलझे बेरी अंखियाँ
देखत देखत जाँ छब ने खोउं री निज देह ना तब अँखिया
युगल प्रेम रस का बही री कोई रोकत लो मोरी अखियाँ
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