होले होले बतियाओ अली सब
लाल देखन लागे लाडिली सु मुख अब
होले होले पवन पियो
साँस को स्वर कर युगलवर ना छेड़ो
होले होले अलक-पलक निहारों
पलक झुका अब रेणु बन जाओ , दृष्टि से ना विघ्न डालो
होले होले पट भी गिराओ
युगल प्रीत को प्रेम निकुँज में बसाओ
होले होले असुवन बहाओ
सिसकन को भी तनिक दबाओ
होले होले दोउन में बसत जाओ
प्रियाप्रियतम मिलन सुगन्ध अंगन सब रमाओ
होले होले वृंदा-मञ्जरी हो जाओ
लोक रूप बिसार , नित प्रीत रस सिंधु में डूबत जाओ
होले होले रस सिंधु में भीगे जाओ
तनिक न उचाट मन ,तेरन को करपग न फैलाओ
होले होले रसमय तृषा रोम रोम जगाओ
पिवत पिवत रस "तृषित" प्रिया-नाम ही गाओ
Comments
Post a Comment