Skip to main content

ये तेरे मेरे दरमियाँ गिरते पर्दे । अधूरी रचना

तेरे मेरे दरमियाँ यें गिरते पर्दे , रह रह कर क्यों यें हसरतें उठ जाती है
पर्दों का शौक तुझे फ़िर यहीं शिक़ायत क्यों बन जाती है

लो अब हमें तेरे पर्दों औ चिल्मनों से ईश्क हो गया
मुझसे रुठने का तेरा फ़ितूर फिर बिखर सा गया

adhuri jise pura krna h . samay ho tb

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...