तेरे मेरे दरमियाँ यें गिरते पर्दे , रह रह कर क्यों यें हसरतें उठ जाती है
पर्दों का शौक तुझे फ़िर यहीं शिक़ायत क्यों बन जाती है
लो अब हमें तेरे पर्दों औ चिल्मनों से ईश्क हो गया
मुझसे रुठने का तेरा फ़ितूर फिर बिखर सा गया
adhuri jise pura krna h . samay ho tb
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