*शुद्ध प्रेमविलास मूर्ति श्रीराधा * समस्त लोकों के समस्त प्रेम भावों से अतीत है श्री ब्रजपरिकरों का निरुपाधिक प्रेम । निरुपाधिक अर्थात् उपाधि रहित । ऐसो प्रेम जिसे न किसी रूप की न गुणादि के आश्रय की अवलंबन की कोई आवश्यकता है । प्रेम स्वयं परम समर्थ है । बाह्य रूप-सौंदर्य-गुण आदि कारणों से उदित होने वाला भाव प्रेम कदापि नहीं है । निरुपाधिक प्रेम न कारण से उत्पन्न होता है न कारण नष्ट होने पर समाप्त होता है। वरन यह तो प्रतिक्षण वर्धमान है । रूप गुण आदि प्रेम के हेतु नहीं वरन प्रेम इनका हेतु होता है । प्रेम ही प्रेमास्पद में अपार गुण रूप दर्शन कराता है ।समस्त ब्रज परिकरों के हृदय इसी निरुपाधि प्रेम से आप्लावित हैं । परंतु श्रीगोपांगनाओं का प्रेम इस निरुपाधि प्रेम की भी अति उच्च अवस्था है । क्योंकि इनके प्रेम में माधुर्य भाव की मधुर सुगंध सुवासित है । माधुर्य का तो आधार ही संपूर्ण समर्पण है इसी कारण इनका प्रेम संपूर्णता से संपूर्ण सेवा का साधन हो जाता है । इन समस्त कांताभावमयी श्री गोपांगनाओं की मुकुटमणि सिरमौर परम उद्गम आधार स्वरूपा परम आराध्या परम आदर्शतम प्रेम पयोधि श्री श्री नित्यनिकुं