वेणु मूलतः श्रीप्रिया का श्रंगार है वह श्यामसुन्दर को सखियों द्वारा मिला है । हित सखी है राधा किंकरी । निभृत स्थिति में प्रत्येक श्रंगार कंकरियां सुरक्षित रखती है । भगवान शिव के ध्यान में श्री यूगल का उत्कर्ष मंजरित्व प्रकट है । अतः दिव्याभूषण का रक्षण वह ही करते है । मंजरी रूप । श्रीप्रिया वेणु से अति विभोरित है क्योंकि वह उन्हें श्यामसुन्दर की अन्तः वासी प्रिया जानती है । श्याम सुंदर वेणु से अति प्रेम करते है क्योंकि वह श्रीप्रिया की सौरभता और माधुर्यता में ही डूबी हुई रहती है । वस्तुतः वेणु ऐसा ही रहस्य है । वह युगल के प्रेम की उपासिका है । हित परस्पर । तृषित । समस्त भावों की सुधा श्रीप्रिया है अतः किंकरी , मंजरी , सहचरी भाव की मूल धरा भी वही है । यह भाव सम्पूर्णता से उनमें सदा है । कोई भाव श्रीप्रिया सुधा से भिन्न हो ही नहीँ सकता । तृषित