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Showing posts from July, 2016

श्रिया दीदी 3 भाव पद

🌹🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹 बनी रे माधो राधा कृष्ण बनी। कृष्ण रंगे राधा के रंग में, युगल छवि सोहे ईक संग में, मोर मुकुट धर, पिताम्बर धर, दमकत शीश मणी। नंद यशोदा के मन भावन, धन्य-धन्य हैं पतित पावन, संत विप्र के प्राण, प्राण धन, दीनानाथ धनी। पग नूपूर पैजनियां बाजे, रतन सिंघासन कृष्ण बिराजे, श्रीजी बनीं मुरली -मनोहर श्रीराधाजी, संग में सखी सजनी। युगल छवि शोभा कस बरणो, झांकी देख लेलियो शरणो, रंग अबीर बरष कर बरषे, बूंटी और छनी। 🌹🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹❤🌹 यथार्थ! यही यथार्थ है बाँकि सब मिथ्या। हरि जैसा जीव को कोई दिलवर न मिलेगा..... एक अवलंब तुम्हीं, हरि! मेरे बाकी सभी मील के पत्थर, छूटें साँझ-सवेरे मैंने निशि-दिन जड़ प्रवृतिवश लिया क्षणिक सुख-भोगों में रस अब सुध हुई, काल डोरे कस लगा रहा जब फेरे हे अव्यक्त, अनाम, अनिर्वच ! सोये भी तुम सृष्टि-नियम रच पर यदि मेरी श्रद्धा हो सच नींद रहे क्यों घेरे ! नभ की और टकटकी बाँधे मैं बैठी हूँ पथ पर आधे रहो मौनव्रत भी यदि साधे पल तो रहो अँधेरे एक अवलंब तुम्हीं, हरि ! मेरे बाकी सभी मील के पत्थर, छूटें साँझ-सवेरे 🍁🍁🍁🍁👏👏👏

बिरहनी भाव , कृष्णमुरारी जी ।

कृष्ण मुरारी: 🌺🌷🌺 *जय श्री कृष्ण*🌺🌷🌺 *पिय को प्यारी आजु झुलाबै री !!*            बिराजै  झूलन  पै श्याम सुंदर !                      प्यारी  आजु  मृदु झुलाबै  री ! देखु री सखी प्यारी परम् प्रेम  !                     हिय अमिय रस छलकाबै री !! दोउ  कर सो  झूलन  डोरी धरि !                     मधुर  हौले  हौले  डुलाबै  री !! लागै अस प्रेम रस सागर प्यारी !                     पिय पै सर्बस रही चढ़ाबै  री !! रस भींज उन्मक्त प्यारे मोहन !                     कर धरि बंशी बैन बजाबै री !! बिलोकत "बिरहनी" सखी दोउन !                     रस  अनत  माधुरी  पाबै री !!        .....✍🏻🌹कान्हा बिरहनी 🌺🌷🌺 *जय श्री कृष्ण*🌺🌷🌺 श्यामा छबि लखि अखियन भरी आई !! उर अंतर अति हुक उठी सौ जिय लगी बौराई ! प्यारी नैननि अलकनि श्यामा सुघर सुखदाई ! भाल भृकुटी कांति दमकै नैनन नाही समाई ! "बिरहनी" इहि मुखचन्द्र पै कोटिन बलिहारी जाई !! देखूँ सखी प्यारी पिय अंकनी में ! दुहति दोउ गौ रस मिली कै आजु मटिकनि में ! दोउ दोउन कै कर उलझै रस गिरत चहुँ घटिकनि में ! पिय नैन लग्यो टे

मधुर भोर लीला , संगिनी

ठंडी मधुर मधुर ब्यार,यमुना जु की कल कल,लहलहाते पेड़,पत्तों की सरसराहट,डाल और लताओं का आलिंगन,युगल पक्षियों व जीवों का मधुर मिलन,धरा पर नृत्य करते सुनहरे हरे तृण,सुगंधित पुष्पों पर सुबह की ओस की बूँदें,सुमधुर संगीत की बेला में महकता नाचता गाता निकुंज। बता रहा है पवन का कण कण कि यहाँ अभी कुछ देर पहले ही हुआ एक नवसिंचित प्रेमबीज का आरोपन।चंचल सखियों के हंसते मुस्कराते अति कोमल सुंदर मुख।नाच रहा है प्रकृति का हर कण। ये जो निकुंज की मधुर महक भरी पुरवाई है ये छू आई है युगलवर के रसस्कित अधरों को।यमुनाजल भी प्रियाप्रियतम रससुधा से छलका है और पुष्पों की पंखड़ियों पर ये ओसबिन्दु उनके लालसुर्ख भीगे से अधरों का ही रंग चुरा लाए हैं।ये आलिंगन ये संगीत ये नृत्य युगल के आगाध प्रगाढ़ रात्रि संमिलन की ही सब निशानियां हैं जो प्रभात फेरी में ही सम्पूर्ण जगत को प्रेम के रंग में रंग आतीं हैं। पर अभी भी ये निकुंज में शांति कैसी!! अब तक तो सब सखियों को जुट जाना चाहिए ना युगल के वस्त्राभूषणों की साज संवार में और प्रिया जु के स्नान की भी अभी कोई तैयारी ना हुई है।आखिर कहाँ गुम हैं आज सब। मंगला समय भी बीत गया।

श्यामसुन्दर का चरणों पर मेहँदी लगाना , संगिनी

सुंदर पुष्प वाटिका निकुंज में तमाल तले छांव में श्यामा जु बैठी हैं अपने प्राणप्रियतम के समक्ष लजाई शरमाई सी।श्यामसुंदर प्यारी प्रियतमा के चरणों पर मेहंदी लगा रहे हैं। श्यामा जु ने घुटनों तक अपने लहंगे को दोनों हाथों से थाम रखा है।वे जानती हैं कि श्यामसुंदर जु जावक लगाने में अत्यधिक व्यस्त हैं और वो ऊपर नजरें उठाकर नहीं देख रहे।तो आज प्रिया जु टकटकी लगाए प्यारे जु को निहार रहीं हैं।सुंदर सुंदर श्यामसुंदर इस समय उन्हें इतने प्रिय लग रहे हैं कि वो उनके मुख के एक एक हाव भाव को बड़े स्नेह से भीतर उतार रहीं हैं।श्यामसुंदर जु की कजरारी गहरी आँखों में डूब ही जातीं हैं और जैसे ही श्याम जु तनिक उनकी तरफ देखते हैं तो वे झट से नजरें झुका लेतीं हैं शर्माकर।श्यामसुंदर जु जानते हैं आज प्रिया जु की मतवारी चित्तवन को इसलिए मुस्करा कर वो फिर अपना काम करने लगते हैं।श्यामा जु धीरे धीरे फिर से पलकें उठातीं हुईं श्यामसुंदर जु को निहारती हैं।उनके रसस्कित अधर श्याम जु के लाल अधरों पर नज़र पड़ते ही तिलमिलाने लगते हैं पर वो खुद को काबू में रखते हुए बुला उठतीं हैं निकुंज द्वार पर खड़ी एक सखी को जो कब से यही चाह रह

बारिश तुम जैसी और मिट्टी मुझ जैसी है , संगिनी

"ओ कान्हा बारिश तुम जैसी और मिट्टी मुझ जैसी है तू बरसता रहे और मैं महकती रहूँ" आज अद्भुत है निकुंज की पुरवाई।सब सखियों ने मिल श्यामा जु के लिए कदम्ब तले पुष्पों से सजा झूला लगाया है।मञ्जरी सखी उन्हें झूले पर पधराकर दूर बैठीं मंद मंद पुष्पाविंत डोर से झुला रही हैं।पास ही खड़ीं दूसरी सखी उन्हें चंवर डुला रहीं हैं और एक ओर एक सखी प्रिया जु के लिए स्वर्ण जड़ित थाल में मोहनभोग लिए खड़ीं हैं।पर श्यामा जु तो आज एक अभिन्न ही उन्मादित आवेश में डूबीं हैं।वे जानती तो हैं कि उनके आस पास सखीगण हैं लेकिन अपने ही भावों में डूबीं वो इन सबसे व इनके कार्यों से अनभिज्ञ ही हैं। आसमान में गहरे बादल छाए हैं।कभी कभी बिजली भी कौंध जाती है और बादल की घढ़ घुमड़ घढ़ की ध्वनि से प्रिया जु एक दम से खिलखिला कर हंस देतीं हैं।झूले पर लगे पुष्पों से महकती पवन जब प्रिया जु को छूकर गुज़रती है तो वो एक अनघट सपन्दन से सिहर जातीं हैं और लजाकर चल हट नटखट पुरवाईया कह कर मंद सा मुस्करा देतीं हैं।सखियां उनके इस भावावेश से वाकिफ तो हैं ही और साथ ही वो इस आनंद का खूब लुत्फ भी उठा पा रहीं हैं।आखिर वे ठहरीं प्रिया जु की