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धनी धनी राधिका के चरण

जय जय श्यामा

धनि धनि राधिका के चरण

परब्रह्म के साक्षात् साकार स्वरुप कृष्ण , जिन के दर्शन - सेवन के लिये शिव आदि लालायित ही रह गये | युगों के तप से विशुद्ध हुये मनस्वी - तपस्वी बृज - लीलाओं का रस पान किये | जिनकी क्षण भर सेवा के लिये देवादिक वंदन ही करते रहे | गौ -बंदर - मयुर - कीट - पतंग कैसे भी रुप लीला-दर्शन की भिक्षा मांगते रह गये | चरण - धुली मात्र से असंख्य जीव तर गये | ऐसे परमानन्द परब्रह्म स्वरुप सत्-चित्-आनन्दघन भगवान श्री रसराज कृष्ण प्रेमातुर हो प्रति क्षण अपने चित में श्री राधा के चरणों की सेवा कर पाने का प्रयोजन तलाशते है | किशोरी चरण की सेवा हेतु कोटी ब्रह्माण्डों को अंघडाई मात्र से दिशा -दशा बदल देने वाले प्रेमातुर चातक की तरह किशोरी चरण रुपी चन्द्र की शरण - सेवा हेतु कितने विरल भावों में बह रहे है | किशोरी चरण सेवा हेतु स्वयं कृष्ण गोपियों की किसी भी विनोद लीला हेतु सदा तत्पर है |
ऐसे किशोरी चरण धन्य है और इन चरणों के सेवा-आतुर  रसिक भी धन्य है कि वें ऐसे मर्म को जान सकें कि श्यामसुन्दर का चित् प्रति क्षण कहाँ है ? श्यामसुन्दर के चरण सेवा के भाव को समझ महा करुणामयी प्रभु की ही चेतना विग्रहा श्री राधा जी के चरणों में ही प्रीति लगाने से मधुरतम् रस प्राप्ति सम्भव है | श्री कृष्ण और ऐसे चरण सेवक रसिकों का चित् एक ही ध्यान में है श्री जु चरण | ऐसे रसिक जो रस के मर्म को जान सदा रसमग्न है क्योंकि उनके चित्त में श्री चरण है जहाँ से पिया-प्रितम का भाव क्षण भर को भंग नहीं होता |
नित-क्षण चरण-प्रीति में रहने पर किसी समय तो कृष्ण का साक्षात्कार सम्भव है ही | और श्री सदा रसिका रम्या राधा जी के मर्म को समझने का इससे बडा कोई मार्ग नहीं | चरण सेवा में होने पर जहाँ जिस लीला में किशोरी गमन करेगी ऐसी दुर्लभतम् लीलायें सरलतम् प्रयास से दर्शनीय और सेवनिय होगी | जिन लीलाओं का ब्रह्मादिक मर्म तलाशते है | सखियों के अतिरिक्त प्रवेश नहीं है | ऐसी पराप्रेम की लीलायें श्री जु चरण के मानस सेवन और ध्यान से कृपासाध्य है | किशोरी जी का भाव बडा कोमल है बडी करुणा है उनमें | वें पैर पर लगे कीचड को भी हटा नहीं पाती | किसी के भी प्रयास को किशोरी जी विफल नहीं करती तो हम पातकी क्युं ना केवल किशोरी चरणों में प्रीत करने का प्रयास करें | किशोरी कृपा सर्वत्र है उसे अनुभुत् कर उन्हीं के चरणों में सदा प्राण देह संग ही सदा विलीन हो जायें |
सत्यजीत "तृषित"  || श्री राधे पद शरणम् मम ||

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