लाडिली अंक राखों जानि निज लाली
दासी भई तोरी , संग हो मम महतारी
बोझ बण्यो नाहक तोहे पे , उतारो क्षण होये रूदन भारी ।
ऐसी हो मात अति दुलारी
दूजो संग छुवत होवत उर भारी
कबहुँ न बिसारुं मात अंक तोरी
राखो सदा मास एक रैनन की प्यारी
ज्यों ही बढ़त काल संग आयु मोरी
करयो पाषाण काष्ठ की पर राखो अंक ओ दुलारी
--- सत्यजीत तृषित
सर्वस्व श्यामा प्यारी ।
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