मधुर मधुर नर्म कर कमलों से सखी प्रिया जु का श्रृंगार कर रही है और उस श्रृंगार में छुपे माधुर्य का रहस्य जो प्रिया जु ही जानतीं हैं वह प्रियतम श्यामसुंदर ही हैं। अधरों और नयनों के श्रृंगार से प्रिया जु के समक्ष श्यामसुंदर जु की प्रेमभरी चंचल मुस्कान और चपल शरारत झलक जाती है।उनके गौरवदन पर प्यासे अधरों की थिरकन और चंचल नयनों की देखन ऐसे दौड़ती है कि प्रिया जु मंद हंसती हुईं जैसे ही कंठ से खिलखिलाती सी हंसी की मंद ध्वनि को रोकने का प्रयास करतीं हैं तो उनकी दृष्टि श्यामसुंदर जु की अति माधुर्यमयी नयनों की चाल से उनकी बोलन पर जाती है जो और भी अधिक मधुर है।वो बोलन जो प्रिया जु को अति कर्णप्रिय है और प्रिय श्यामसुंदर जु का पीताम्बर और वसन उनके नयनों के समक्ष झलकता उड़ता उन्हें मोहित करने लगता है। श्यामा जु आरसी में अपने रूप लावण्य को नहीं अपितु स्वयं से अभिन्न श्यामसुंदर जु के माधुर्य को निहार रहीं हैं और उनकी मधुर चितवन प्रिय की अद्भुत मनमोहक त्रिभंगी मुद्रा से सहज लटकन मटकन और उनके पल पल भ्रम में डाल देने वाले हाव भावों पर पड़ती है जहाँ उनके स्वयं के रूप श्रृंगार में भरेपुरे श्यामसुंदर ही दृ