राधे राधे
ब्रज गोपियों ने श्री कृष्ण के साथ इतनी गहरी प्रगाढ़ आत्मीयता बाँधी कि कृष्ण प्रेम ही उनका जीवन हो गया।श्री कृष्ण अति नटखट हैं, उन्होंने देखा कि प्रत्येक दृष्टिकोण से विरक्त बेमन की हो जाने के उपरांत भी गोपियों में अभी कण मात्र आसक्ति अभी शेष है, मेरे प्रति। इन्हें मेरी समीपता का 'सुख' पसन्द है, 'सुख' और भक्ति विरक्ति में सुख कैसा ? भगवान को तो भक्त को पूर्णत: विरत करना है।भगवान के महत्व को जानना, उनके रहस्य को समझना अति दुष्कर है।
इधर नंदबाबा व मैया यशोदा के लिये भी क्षण मात्र का भी सुत-वियोग असहनीय है, आसक्ति की पराकाष्ठा वात्सल्य का सुख। श्री कृष्ण ने बाबा और मैया से कहा-
"अब आप अपनी गैया बछड़े सम्हालों, हमें तो मथुरा जाना है, कंस मामा का निमंत्रण आया है। हमने अब तक यहाँ बहुत आनन्द लिया, मन भर भर के आपका दधि माखन खाया"
मथुरा मगन की बात सुनते ही नंदबाबा और यशोदा मैया व्याकुल और अधीर हो गये, तड़फ कर बोले-
"नहीं लाडले ये सब तुम्हारा ही है ये गैया, दधि माखन हमारा कुछ नहीं है लाल,सब कुछ तुम्हारा ही है लला।यहीं रह कर इनका उपभोग करो और प्राण-धन लाडले हमें आनन्द प्रदान करते रहो।तुम्हारे बिना हम प्राण हीन हैं।"
गोपियों ने सुनी मथुरा मगन की, तब प्रारंभ में उन्हें न अधिक चिंता हुई न अधीरता, क्योंकि उन्हें पूर्ण रूप से विश्वास था कि मैया यशोदा अपने प्रणाधन लाडले लला को जाने ही नहीं देंगी।
किन्तु मैया विलाप करती रह गयी-
"जसोदा बार बार यों भाषै
है कोई ब्रज में हितु हमारौ चलत गोपालहिं राखे।"
क्या ब्रज में हमारा एक भी शुभचिंतक नहीं जो मेरे जाते हुये लाल को रोक सके ? गोपियों ने सुना तो स्तब्ध रह गयीं, रथ के पहिये से लिपट गयीं, मार्ग अविरूद्ध कर दिया।
श्री कृष्ण के आश्वासन में बड़ा आकर्षक था-"मैं परसौं लौट आऊँगा" आज भी ब्रज में उस परसौं की प्रतीक्षा है-
"परसौं की प्रिय आवन की जो कही
कब आवैगी वो बैरन परसौं"
यशोदा विक्षिप्त सी बिलखती रही-
"कहा काज मेरे छगन-मगन कौ
नृप मधुपुरी बुलायो।
सुफलक सुत मेरे प्रान रहन को
काल रूप बन आयो।"
किन्तु गोपियों ने जब देखा कि अब श्यामसुंदर के मन में हमसे दूर रहने की इच्छा है, तो वह अपने प्रिय कि आज्ञा शिरोधार्य कर तुरंत मार्ग से हट गयीं। उन्होंने हठ नहीं किया। वे दौड़ी दौड़ी मथुरा नहीं गयीं, पीछे पीछे नहीं भागीं। क्यों ? जैसा कृष्ण चाहते थे वैसा ही हुआ।प्रेम-साम्राज्य में प्रेमास्पद के मन की बात पूरी हो, यही भाव निहित होता है।
(डाॅ.मँजु गुप्ता)
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