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तुम मिले तो मैंने पाया है ख़ुदा ....

आप सभी की चरण रज में विनय आश्रय ।
बड़ी बड़ी बातें नहीँ , कुछ अजीब बातें करते है । सरल हो सके तो ......

तू ही मेरी है सारी ज़मीन चाहे कहीं से चलूं तुझपे ही आके रुकु...
- तुम ही तो सब अब मेरे हो प्रियतम् , तन मन वाणी से जो भी हो रहा है , खुद बी खुद आपके लिए हो रहा है । जिस तरह ज़मी नहीँ छूटती वैसे ही तुम मेरे आधार हो । मेरे होने का कारण हो । कभी कभी लगता है जिन रस्तों पर बातों में आपका ज़िक्र नहीँ होना था , वहां सिर्फ आपको सुना , आपको ही खोजा , आपको ही निहारा , और कहा भी आप को , जहाँ तुम्हें छिपाना था , वहाँ भी क्योंकि तुम मेरी ज़मी (आधार) हो चुके .....

तेरे सिवा मैं जाऊँ कहाँ कोई भी राह चुनूं तुझपे ही आके रुकु...
- आपके बिन अब चाह कर कहीँ जा ही नहीँ सकता । जिन रास्तों पर सारा जहाँ हो पर तुम नहीँ , वहाँ अब क़दम जाते ही नहीँ, मुझे हर बार सिर्फ तुम तक आना ही होता है । कहीँ कैसी भी चर्चा हो रही हो शुरू कहीँ से भी पूरी आप के संग ही होनी ही है , ना हो तो भीतर ही फिर हम और गहराने से लगते है । महफ़िलें ख़ामोश हो जाती है। सब सिमट कर हसरतें आप ही हो जाती है मेरे ....... ।

तुम मिले तो लम्हे थम गये, तुम मिले तो सारे गम गये, तुम मिले तो मुस्कुराना आ गया...
- हाँ आप मिले तो वक़्त रुक गया , सब थम ही गया । जीवन की धाराएं कुछ देर रुक ही गई । लगा ज़िंदा हूँ भी और कहीँ हूँ । यें जो रूह है इसे फिर इस तन का ऐतबार ही कहाँ रहा ....सो वक़्त रुक गया ।
और भला यें ग़म होता क्या है ? सच कहूँ तुम तो जानते ही हो कि कल तक जिन बातों पर रोता था वो सब दिलोदिमाग में ही नहीं । और बहुत बार तो और लोगों ने एहसास दिलाया कि हाँ वो तो दर्द वाली , तकलीफ़ वाली स्थितियां थी और मुझे उन्हें सम्भालने के लिए ही तो कुछ करना था । पर अब जैसे घर में सागर हो तो सर पर घड़ा रख जंगलों में रेगिस्तानों में क्यों फिरुँ ? सच कोई ग़म ही नहीँ , आपको तो पता है बहुत बार अब दर्द नहीँ होता , ग़म नहीँ होता और अभिनय भी नहीँ हो पाता तो अजीब सी स्थितियां हो जाती है ।
आप मिलें जब से जीना आया , खुश रहना आया , बेवजह की बातों को भूल सदा मुस्कुराना आया । अब सुख दुःख से हलचल होती ही नहीँ । लगता है आप से यूँ ही दिन रात बातें होती ही रहे ।

तुम मिले तो जादू छा गया, तुम मिले तो जीना आ गया, तुम मिले तो मैने पाया है खुदा...
- आप मिले तो सच सब ज़ादू ही हो गया , सब और आप , सब स्वाद बेस्वाद और सब काँटे फूल हो गए । लोगों के सामने जाने पर अजीब सी हलचलें होने लगी । जैसे रूह तुम्हारा दामन पकड़ खड़ी हो । सब और ज़ादू सा होने लगा , ख्वाहिशें फुर्र हो गई और जो भी मिला बेहिसाब मेहरबानी बन गई । सांस लेना , पानी पीना तक सब में आप , आपकी मेहरबानियाँ ....
और तो क्या कहूँ हाँ आप मेरे सब कुछ हो , आप से अब मैं हूँ , आप के बाहर सोच जाती ही नहीँ , आप मेरे सब हो , मेरे ईश्वर भी , ईश्वर को पाना ही इस आत्मा के होने कारण है और लगता है हाँ अपना .... ख़ुदा पा लिया ।

तुझमे किनारा दिखे, दिल को सहारा दिखे, आ मेरी धड़कन थाम ले...
- जीवन की इस लहर को आप के मिलने पर किनारा ही मिल गया है । जो सदा ईधर उधर की बेचैनियाँ थी ठहर गई । दिल को अब आसरा है , साथ है , हल्का है अब ज़िन्दगी की कोई तलब नहीँ , आप इन धड़कनों को थाम लो , और चाहे जैसे इन्हें रखो । बस संग रहो । अब साँसों में भी आप का एहसास चाहिए , ना छुटने वाला संग चाहिए ।

तेरी तरफ ही मुड़े, यह साँस तुझसे जुड़े, हर पल ये तेरा नाम ले...
- साँसे अब आपकी महक को तलाशती है , आपकी सुगन्ध पाकर ही इन्हें सुकूँ मिलता है । हर साँस आप से जुड़ जाएं । सांसे हर बार आप के नाम से चले , किसी साँस में आपकी कशिश , नाम की चाह , आप की तलब न हो तो ऐसी साँस ही फिर न हो ।

तुम मिले तो अब क्या है कमी, तुम मिले तो दुनिया मिल गयी, तुम मिले तो मिल गया आसरा...
- और क्या कहूँ , आप हो तो ज़रा भी कमी नहीँ , कोई हसरत नहीँ , कोई और तलब नहीँ , कोई और आस नहीँ , हां अपनी दुनिया ही मिल गई । सब कुछ ही मिल गया है । आप हो तो हल्की सी भी कोई और बेचैनी क्यों हो ? मुझे अपना आसरा मिल ही गया , जन्मों की तलब आप पर आकर कहीँ जा ही नहीँ सकती । सब मिल गया आपमें ही .....

दिन मेरे तुझसे चले, रातें भी तुझसे ढले, है वक़्त तेरे हाथ मे...
- यें दिन आपकी रहमतों से , एहसास से , और आपकी चाहतों चल रहे है , सब ख़ुद ब ख़ुद चल रहा है , और मेरे भीतर बस आप ही से बातें हो रही है , कड़वी सी ज़िन्दगी बड़ी मीठी सी हो गई है ।
रातों में भी आपका संग ही है । आप संग जागना , और आप बिन बैचेन हो उठना । और आप मिलोगें ख़्वाब में सो आपकी ही गोद में सो जाना , कभी सारी-सारी रात आपकी यादों में खो कर .....
अब वक़्त आपके हाथ है , अपना कुछ नहीँ , इक नशा सा है , और अंदर बाहर सिर्फ आप ।

तू ही शहेर है मेरा, तुझमे ही घर है मेरा, रहता है तेरे साथ मे...
- आप ही मेरा बसेरा हो , घर हो । अब संसार के कोई शीशमहल वो ख़ुशी नहीँ दे सकते । आप में ही डूबे रहना मेरा घर है । देखने में कही भी दिखूं , हूँ सदा आप में , आपकी छाया में , आपके एहसास  में , आपके संग में , और नहीँ हो आप तो उसी पल महल भी चुभने लगते है , सब नर्क हो जाता है , और अंदर-बाहर सब और आपकी तलाश .....

तुम मिले तो मिल गया हमसफ़र, तुम मिले तो खुद की है खबर, तुम मिले तो रिश्ता सा बन गया...
- आप मिले हो तो हमसफ़र मिले गए । आपकी ही तो तलाश थी सदियोँ से तृषित रूह को ,सफ़र है और हमसफर भी और आपकी ही ओर निहारते हुए , आपको सोचते हुए सफ़र जी उठा है । अब तो सफर भी आप हो मन्ज़िल भी और राहगीर भी ।
आप से एक अटूट रिश्ता सा है , पहले ऐसा न सोचा था पर रूह आपको मिल यूँ खिल उठी जैसे बच्चे को माँ की गोद , प्रियतमा को उसके प्रेम का स्पर्श , हाँ है कोई रिश्ता किसी से तो सच में आप से ही तो है , है न प्रियतम् ।
और आप मिले तो खुद की खबर मिली , पता लगा कि कोई सामान ही नहीँ , आपकी भी चाह की जा सकती है , आपका हुआ जा सकता है , आपको (ईश्वर को भी) पाया जा सकता है , यूँ दुनिया के मेलों में ही बार बार गुम नहीँ होना , मैं हूँ प्रियतम की होने को , इस तरह अपनी भी खबर आप से मिली , है न मेरे मोहना ......
- सत्यजीत तृषित ।

तू ही मेरी है सारी ज़मीन चाहे कहीं से चलूं तुझपे ही आके रुकु...
तेरे सिवा मैं जाऊँ कहाँ कोई भी राह चुनूं तुझपे ही आके रुकु...

तुम मिले तो लम्हे थम गये, तुम मिले तो सारे गम गये, तुम मिले तो मुस्कुराना आ गया...
तुम मिले तो जादू छा गया, तुम मिले तो जीना आ गया, तुम मिले तो मैने पाया है खुदा...

तुझमे किनारा दिखे, दिल को सहारा दिखे, आ मेरी धड़कन थाम ले...
तेरी तरफ ही मुड़े, यह साँस तुझसे जुड़े, हर पल ये तेरा नाम ले...

तुम मिले तो अब क्या है कमी, तुम मिले तो दुनिया मिल गयी, तुम मिले तो मिल गया आसरा...
तुम मिले तो जादू छा गया, तुम मिले तो जीना आ गया, तुम मिले तो मैने पाया है खुदा...

दिन मेरे तुझसे चले, रातें भी तुझसे ढले, है वक़्त तेरे हाथ मे...
तू ही शहेर है मेरा, तुझमे ही घर है मेरा, रहता है तेरे साथ मे...

तुम मिले तो मिल गया हमसफ़र, तुम मिले तो खुद की है खबर, तुम मिले तो रिश्ता सा बन गया...
तुम मिले तो जादू छा गया, तुम मिले तो जीना आ गया, तुम मिले तो मैने पाया है खुदा...

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