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श्यामा जू! सेवा सुख कब पाऊँ

श्यामा जू! सेवा सुख कब पाऊँ।
कोटि जन्म बीते प्रिया यों ही,भटक भटक मैं वयस बिताऊँ।
करहु कृपा वृषभानुनंदिनी पद-सरोज की सन्निधि पाऊँ।
मेरो कौन सगौ या जग में,जिसको अपनी व्यथा सुनाऊँ।
श्यामा जू तुम्हारी होकर भी,तब कृपा को क्यूँ बिलखाऊँ।
तब पद-पंकज सम्पति मेरी,ताहि में नित चित्त लगाऊँ।
चन्द्रानन की रहूँ चकोरी,भ्रमरी बन चरनन गुन गाऊँ।
सुहृद स्वामिनी कृपा करिहौ,हौं तेरी चेरी कहलाऊँ।

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