.........ब्रजरज: वन्दना....................
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सुख सम्पत्ति: रस दम्पत्ति,कामौ अजेय काम: पिडित:।
सुर नर मुनादि: पूजित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।१।।
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( काम के लिए अजेय होकर भी सदैव कामुक रहने वाले रस दम्पत्ति का सुख ही एकमात्र जिनका सुख है एवं जो देवता,मनुष्य और मुनिजनो की पूजनीय है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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सुमनि सार अति कोमलै,ह्रदय अनंत भाव निहित:।
अंकनि द्वौ धारित नित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।२।।
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(अपने हृदय मे अनेक युगल भावो को समाहित किये हुए,जो पुष्प पराग से भी अधिक कोमल है और जो अपनी गोद मे नित्य दोनो अर्थात युगल को धारण करती है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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उर भाव युगल: रोपिणि,रस बेलि तरू सिञ्चित:।
किञ्चित न दृश्यम् वंञ्चित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।३।।
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(हृदय भूमि मे युगल भावो को लगाने वाली,रस से इन लताओ और वृक्षो को सींचने वाली जो युगल भाव राज के किसी भी दृश्य से जरा भी वंचित नही रहती,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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प्रति अंग सुअंग स्पर्शयितै,सौरभ पद कंज सुरभित:।
प्रियतम प्रिया रस लु