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Showing posts from April, 2019

ब्रजरज: वन्दना ... प्यारी जू

.........ब्रजरज: वन्दना.................... _____________________________________ . सुख सम्पत्ति: रस दम्पत्ति,कामौ अजेय काम: पिडित:। सुर नर मुनादि: पूजित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।१।। . ( काम के लिए अजेय होकर भी सदैव कामुक रहने वाले रस दम्पत्ति का सुख ही एकमात्र जिनका सुख है एवं जो देवता,मनुष्य और मुनिजनो की पूजनीय है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।) . सुमनि सार अति कोमलै,ह्रदय अनंत भाव निहित:। अंकनि द्वौ धारित नित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।२।। . (अपने हृदय मे अनेक युगल भावो को समाहित किये हुए,जो पुष्प पराग से भी अधिक कोमल है और जो अपनी गोद मे नित्य दोनो अर्थात युगल को धारण करती है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।) . उर भाव युगल: रोपिणि,रस बेलि तरू सिञ्चित:। किञ्चित न दृश्यम् वंञ्चित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।३।। . (हृदय भूमि मे युगल भावो को लगाने वाली,रस से इन लताओ और वृक्षो को सींचने वाली जो युगल भाव राज के किसी भी दृश्य से जरा भी वंचित नही रहती,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।) . प्रति अंग सुअंग स्पर्शयितै,सौरभ पद कंज सुरभित:। प्रियतम प्रिया रस लु

प्रीति याचना , प्यारी जू

.................प्रीति: याचनां..…........... ___________________________________ . गोपाधिराज नंदना ,सुता यशोदा चन्दनां। गोपागंना सर्व पति,उरऽजति निकुंज मम्।।१।। (हे समस्त गोपो के राजा के नंदन अर्थात पुत्र एवं यशोदा के पुत्र,उनके ह्रदयाकाश रूपी चंद्रमा तथा सभी गोपियो के पति,मेरे इस ह्रदय निकुंज मे विराजित हो) . किरत भानु नंदिनी,ब्रजेन्द्र लाल संगिनि। ललितादि अष्टंग सखी,उरऽजति निकुंज मम्।।२।। (हे किरति एवं वृषभानु की पुत्री,हे ब्रज के इन्द्र अर्थात ब्रज के राजा की संगिनी आप अपनी ललिता आदि आपके ही आठ अंगरूप सखियो सहित,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो) . तमाल द्रुम चढति,कनक उर्ध्व वल्लरी। जटिल निभृत विलासिनी,उरऽजति निकुंज मम्।।३।। (हे तमाल वृक्ष पर ऊपर की ओर चढी हुई स्वर्ण बेल समान, अति अति गहन निभृत मे विलास करती हुई,मेरे ह्रदय निकुंज मे विराजित हो) . कटाक्ष अक्षि दृश्यताम्,विधि विविध निवारणाम्। क्रीडां विभिन्न करिष्यषि,उरऽजति निकुंज मम्।।४।। (नयनो की विभिन्न भाव भंगिमाओ से देखती आप एवं आपके भाव को जानकर उसके निवारण के बहुत से उपाय एवं इसके लिए ही अनेको खेल करते लालजु,मेर