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गुरू शरण , प्यारी जू

🌼🌼🌼🌼-------------भावार्थ-----------🌼🌼🌼🌼 श्रीगुरू पूर्णिमामहोत्सव  की बधाईयाँ........ ० अहो ! मूढमन: श्रीगुरूशरणं चल:। 🌼अरे मूरख मन श्रीगुरूदेव की शरण मे चल। ० किंऽन्तरै श्रीगुरूहरि: प्रकटऽप्रकटभेदितां। श्रीहरिकृपा भू: गुरौरूपं फल: ।।१।। 🌼यदि तू पूछता है क्यूँ तो सुन-------- अरे मन श्रीगुरू और श्रीहरि मे क्या अन्तर है तुझे पता है ,प्रकट और अप्रकट का ही,क्यूकी श्रीहरि सर्वसाधारण को दृश्य नही किंतु श्रीगुरूदेव सहज दर्शनीय है।इस पृथ्वी पर श्रीगुरूदेव का स्वरूप श्रीहरि की कृपा का ही तो फल है। अहो ! मूढमन: श्रीगुरूशरणं चल:। 🌼अत: अरे मूरख मन श्रीगुरूदेव की शरण मे चल। ० लोकचक्षुषां नदृश्यंहरि ईदृशंगुरौनबन्धनां। श्रीहरि पुष्पं तत्वत:गुरौ सपर्णम् दल: ।।२ 🌼मानव देह के इन भौतिक नेत्रो से श्रीहरि का दरशन संभव नही किंतु श्रीगुरूदेव के लिए इस प्रकार का कोई बन्धन नही है ।यदि श्रीहरि वृक्ष के फूल है तो सद्गुरूदेव उस वृक्ष के पत्ते ओर शाखाए है। अहो ! मूढमन: श्रीगुरूशरणं चल:। 🌼अत: अरे मूरख मन श्रीगुरूदेव की शरण मे चल। ० अज्ञानतमस गतोऽयंगुरू: ज्ञानपथप्रकाशितां । सर्वसमदृष्टा मूढ: सज्जनौ च खल:

शुभता शुभ लीला । प्यारी जू

(हिंदी लीला विस्तार सहित) ________________शुभता शुभ: किम् जानामि?_____________ . सखि सत्यं वदसि किं शुभ त्वसि? अधीर: विलम्बेतुप्रियं प्रिया: कुंजेषुबर्हि निकसि।।१।। . तत: पुनऽवस्थितै ललितादि सखिन: रमणी धीर: धरावती। तत्क्षणै प्रियां वामऽक्षिचलत्वं मधुवचनानि निजमुखै वदसि।।२।। . शुभाश्ंकै मम् नयनचलत्वं अहो! प्रियतम् शीघ्रं आवति। वाक्पटु ललितऽलि रासेश्वरी शुभता: निज पृच्छसि।।३।। . यत् श्रुत्वां किंञ्चित मंदहास: पक्ष्म्वाञ्च सुमुखि ललितौत्तरम् ददाति। मम् हितै मम् श्यामसुन्दरौ आगत: सर्वतौ शुभ: भवति।।४।। . तत् किंञ्चिदून: क्लैशं तत्त्वत: यत् वार्ता: सखिन: अति प्रसारति। ते मुरलीमनोहर: वेर्णुधरऽधरंम्नाम्नावहै मंदहसति आह! इतिहि शुभसि।।५।। . शुभता च प्रियतम: निजमृदुऽगुंलि: मधुर: स्पर्शै मम् प्रतिअंङ्गै प्राप्यति:। दृश्यागत: प्रिय: च मधुरस्पर्शं लुप्त: प्रिया: तद् एक: सखिन: पुनिहि कथं हसति।।६ . च त्वं प्रिय मनुहारौकृत्वं यद् त्वंरूष्टौ ,श्रुत्वां मधैश्याम: वदति। स: मम् शुभता अस्ति! यत्श्रुत्वां राधां नयनंसलज्जभारेनमति।।७।। . पुन: वद् श्यामसुन्दर: -- यदा "श्रीराधा:" किंञ्चितक्षणै मम् कर्ण