एक ‘उपास्य’ देव ही करते लीला विविध अनन्त प्रकार।
पूजे जाते वे विभिन्न रूपों में निज-निज रुचि-अनुसार ।
सर्वोपरि-कर्तव्य-धर्म है यही एक, जीवनका सार।
करें स्वकर्मोंसे उपासना उनकी ही, रख शुद्ध विचार॥
-- भाई जी
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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