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हरि मेरे प्रियतम् पदरत्नाकर

।।श्री हरिः शरणम्।।
भक्ति प्रेरक पद्य(पद रत्नाकर)
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हरि मेरे प्रियतम सदा रहते मेरे पास ।
देखा करते वे मुझे छाया मुख मृदु हास ।।

एक पलक होते नहीँ प्रियतम मुझसे दूर ।
सदा दिखाते वे मुझे मुख - मयंकका नूर ।।

देते रहते नित्य सुख निज संनिधिका पूर्ण ।
हुए अन्य संकल्प सब मेरे मनके चूर्ण ।।

लगी हृदयमेँ एक ही मीठी लगन ललाम ।
रहूँ निरखती मैँ सदा मनहर - छवि सुख - धाम ।।

जय जय श्रीराधे ! जय जय श्रीराधे ! जय जय श्रीराधे !
पद सँ॰_490
( दोहा )(पद रत्नाकर-श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार भाई जी)
28
हे मेरे नाथ;
मैं आपको भूलूँ नहीं.

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