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Showing posts from July, 2018

श्रीगुरु चरन लड़ाइहौं , संगिनी जू भाव

Do not Share "प्रथम जथामति श्रीगुरु चरन लड़ाइहौं। उदित मुदित अनुराग प्रेम गुन गाइहौं।। गौरस्याम सुखरासि तिनहैं दुलराइहौं। देहु सुमति बलि जाऊं आनंद बढ़ाइहौं।। आनंद सिंधु बढ़ाइ छिन छिन प्रेम प्रसादहिं पाइहौं। जयश्रीबरबिहारिनिदासि कृपा तें हरषि मंगल गाइहौं।।" नित नित निहार रही...दासी निहार क्या रही...निहारने भर की चाहना को मात्र चाह रही...यही कामना...बस निहारने भर की...नित नव उत्कण्ठा भरती जा रही हिय में...पर निहार ना पाई री...जुग...कल्प सम काल बीत रहा...अश्रु भी बहना थम चुके...किंचित पुकार उठते उठते भी जब दम तोड़ने लगी...क्षुधा भीतर कहीं खोने लगी...तभी...तभी सखी री...एक पट आ गिरा पटावरण में कामग्रसित नेत्रों समक्ष...तनिक घबरा सी गई...जैसे एक नहीं अनंत पट लगा रखे थे स्वयं ही लौकिक दायरों के...कुछ समझ ना पड़ रही...ओझल हो रहा या भरी भरी सिसकियों की ब्यार में मधुता भरने को... पट गिरते ही जैसे कुछ सुवास सी भर आई और हिय प्रफुल्लित पुलकित हो उठा...नयन मूँद बस निहार पाई तो अति सरस सरिता से बहते उतरते अंतःकरण में प्रकाशित चरन...जाने कौन...कैसे...कहाँ से...ऐसे प्रवेश किए भावसागर में