मोरकुटी युगल लीला-14 जय जय श्यामाश्याम !! अप्राकृत लीला राज्य का असर प्राकृत राज्य पर होना स्वाभाविक ही है।मधुर राग छिड़ते ही जैसे प्रकृति नाच उठी और जैसे जैसे मधुर राग गहराता है वैसे ही प्रकृति की मधुरिमा में श्यामा श्यामसुंदर जु रसरंग बहना गहराता है।मधुर राग धीरे धीरे नाद का रूप ले लेता है और यह नाद फिर बाहरी यंत्र से ना सुनाई देकर अपने भीतर से ही सुनाई आने लगता है।गहराईयों में उतरे इस अनहद नाद से हृदय में जो प्रियतम मिलन की उत्कण्ठा बढ़ती है वह भीतर देह विस्मरण कराती जाती है और स्वरूप से विच्छेद। ललिता सखी जु ने ज्यों ही पूर्वराग हेतु वीणा उठा उस पर प्रेमराग छेड़ा वैसे ही श्यामा श्यामसुंदर जु रस प्रतीति से स्व को भूलकर परस्पर रससुख प्रदान करने लगे।वहाँ मयूर मयूरी नृत्य कलाक्रीड़ाओं में डूबी इस भ्रमरी के नयन से बहा हिमकण नयन से गिरते हुए सूर्य का ताप पा जाता है।पहले तो भीतर से सुनाई देने वाला ये नाद और फिर बाहरी ताप।बाहरी आवरण का एहसास होते ही रस जड़ता क्षीण होने लगती है।भीतर नाद से हलचल और फिर बाहर से तापरूपी मिलन परिधियों से महक जाना भ्रमरी को अपने ही गुंथे जाल से खींच लाता