प्रेम और तुमसे किसने कहा तुम्हें नहीँ , नहीँ ऐसा नहीँ .... तुमसे तो नहीँ देखा है हाल तुम्हारे आशिक़ों का मोहन !! कोई अधूरा तो कोई बिखरा क्या हाल कर देते हो ज़िन्दगी तबाह भी नहीँ होती तलाश पूरी भी नहीँ होती बेकरारी तो सोने भी नहीँ देती मरने को भी तो आशिक़ी राज़ी नहीँ होती सब होता भी है और कुछ होता भी नहीँ चिलमन बुझे तो साये जाते नहीँ नहीँ , तुमसे नहीँ तुम ने फ़क़त कहाँ किसी को सलामत भी छोड़ा जिसको देखा नज़रों से मार कर ही छोड़ा हम जी नहीँ रहे मर रहे है ... तुम मरने नहीँ दोंगे और जीने भी कहाँ दोंगे ग़र किसी बार सच में भी मन हो मुहब्बत का तुम्हें तो ज़रा पलकों से पूछना फ़क़त वह तब तक जान जाएं हमें हम आते है और लौट जाते है -- सत्यजीत तृषित क्यों तुम उतरते हो और अधूरे उतरते हो किसी रोज कुछ यूँ भी उतरो मुझमेँ तुम ही तुम रहो हम गुम भी ना रहे ना बख्शो कोई सितारों की ज़न्नत बस एक पल गुज़रे तुम बिन तो हम भी हम क्यों रहे