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Showing posts from May, 2017

सखी री महारस दायी ये , मृदुला जु

सखी री महारस दायी ये प्रेम वियोग वियोग आहा वियोग .....॥ प्रेम की पराकाष्ठा तक सहज ही पहुंचाने वाला परम वरेण्य है वियोग ॥ संयोग और वियोग प्रेम के दो पात कहे गये हैं पर लागे है कि वियोग अधिक श्रेष्ठ है ॥ कोई कहे कैसै । वियोग तो महा पीड़ादायक न ॥ हां री पर वही पीडा तो प्रेम के सर्वोच्चतम शिखर पर ले जावे ॥ संसार भी प्रेम का अनुभव करता परंतु वह वास्तविक प्रेम नहीं वरन काम है अर्थात् हमारी कामना पूरी हो जावे ॥ प्रत्येक संबंध ही काम जनित है अथवा मोहजनित ॥ संसार में भी प्रिय का वियोग प्राप्त होता है ॥ उस वियोग में इच्छित व्यक्ति या वस्तु का अभाव उत्पन्न होने पर उसे पाने की कामना बढती जाती ॥ दिनोंदिन बढती उसे प्राप्त करने भोगने की इच्छा और इसे ही संसारी ,प्रेम का बढना कहते ॥ परंतु वास्तव में तो यह कामना का प्रगाढ़ होना ही है ॥ इच्छित व्यक्ति या वस्तु के प्राप्त होने पर  भोग होने पर बडा आनन्द मिलता परंतु धीरे धीरे वह आनन्द कम होने लगता क्योंकि वास्तव में आनन्द उस व्यक्ति में नहीं वरन हमारे मन में होता जो एक जगह एकाग्र होने पर अनुभूत होने लगता ॥ वही  व्यक्ति जो सर्वाधिक इच्छित था अप्रिय हो जाता

श्यामसुन्दर ... , मृदुला जी

श्री राधा श्यामसुन्दर आहा .......श्यामसुन्दर ॥कैसे होते होंगे न हमारे श्यामसुन्दर ॥।प्रेम रस के साकार विग्रह हमारे प्रियतम ॥सब कहते हैं गोपियों के श्री प्रिया के पूर्णतम आधीन हैं वे । तो किस रस के आधीन हैं वे । क्या जीव के समान रूप सौन्दर्य गुण कला आदि से बंधते हैं वे  ॥ ना री उनका तो कहना ही क्या ॥तो क्या देखें हैं उनके विशाल कमल दल लोचन कि भ्रमर बन श्री प्रिया के मुख कमल मकरंद का अनवरत  पान करते नहीं अघाते ॥ क्या सुनें हैं वा के कर्ण पटु कि कछु और सुनाई ही ना देवे वा को  ॥क्या सुगंध ग्रहण करे है वा कि नासिका जो  सदा श्यामा की मधुर अंग गंध के आधीन हुयी रहती है और क्या अनुभव करती है उनकी त्वक् जो सदा सदा निज प्रिया के सुकोमल गात का मधुरतम स्पर्श पाने को लालायित रहती है ॥ वास्तव में हमारे परम प्राण वल्लभ श्यामसुन्दर प्रेम की साकार मूर्ति हैं ।  उनके समस्त अंग समस्त इंद्रियाँ उसी दिव्यातीत प्रेम सार तत्व से ही बनीं हैं ॥ अब जिस तत्व से हमारी इंद्रियाँ निर्मित होतीं हैं उसी तत्व को वे ग्रहण भी कर सकती हैं उससे पर को नहीं  ॥ जैसै हमारी देह पांचभौतिक है तो बस पंचभूत तत्वों को ही एक सीमा तक

प्रेम तत्व , मृदुला जी

श्री राधा प्रेम तत्व प्रेम कितना सुंदर भाव है प्रेम ॥संसार में प्रेम को सर्वाधिक मधुर भावना माना जाता है ॥ जबकी संसार जिस प्रेम को जानता मानता अनुभव करता वह वास्तविक प्रेम है ही नहीं , वह केवल और केवल काम है ॥ संभवतः कुछ लोगो को यह अनुचित लगे परंतु जब तक वास्तविक प्रेम की प्राप्ति नहीं होती यह काम ही परम प्रेम प्रतीत होता है इसमें किसी का कोई दोष नहीं ॥ क्योंकि वास्तविक प्रेम तो जिनकी वस्तु है बिना उनके अनुग्रह के प्राप्त नहीं होती ॥।सोचिये जब निज स्वार्थ स्वरूप काम संसार में इतना मधुर अनुभव होता है कि उसमें डूबे व्यक्ति को संसार की चिन्ता नहीं रहती तो वास्तविक सार स्वरूप दिव्य प्रेम कैसा होता होगा ॥ संसार में किसी के रूप गुण कला या किसी भी अन्य हेतु से आकर्षित होकर उसे प्राप्त करने तथा निज सुखार्थ सदैव समीप रखने की इच्छा को प्रेम जाना जाता है । संसार में प्रेम (काम) की परिणिति भोग है ॥काम की अर्थात् निज सुख भोग की बडी तुच्छ सी सीमा है अतः तनिक से भोग से ही जीव संतुष्ट हो जाता है । उस भोग में भी  प्राप्त होने वाला आनन्द उसी परम आनन्द सिंधु के आनन्द के सीकर का अणु मात्र ही होता है । ख

श्री राधा कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष , मृदुला

श्री राधा कदा करिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम् कैसै हैं श्री प्रिया के श्यामसुन्दर ॥।हमारे भी कहा जा सकता था पर हमारे श्यामसुन्दर को तो हम अपने प्रेम रहित भाव रिक्त हृदय से ही देखते न तो वे हमें वैसै कैसै दीखेंगे जैसै वे वास्तव में हैं । वे वास्तव में कैसै हैं ये तो केवल श्री प्रिया ही जानतीं ॥ उन्हीं के आश्रय से यत्किंचित भाव हृदय भाव नेत्रों से उन्हें निरख पावें तो कुछ हृदय में उतरे कि कैसै हैं वे ॥ श्री प्रिया के हृदय की प्राणों की परम निधि हैं वे ॥ कितने सुकोमल कितने सुकुमार कितने निर्दोष ॥ हम जीवों के पास तो ऐसी कोई वस्तु ही नहीं जिससे हम उस लावण्य सार सिंधु को स्पर्श भी कर पावे ॥ केवल श्री किशोरी ही जीव पर अनुग्रह करें तो वह भाव प्राप्त हो पाता जो श्यामसुन्दर को वास्तव में निरखने की भी पात्रता पाता ॥ तब अनुभव होता आह कितने सुकोमल हैं ये नवघनसुंदर ,स्पर्श को भी भय लागे कि नेक सो कष्ट न हो जावे इन प्राण रत्न  को ॥ ये तो अतिशय भोले हैं कि किसी के भी पास चले जाते हैं देखते ही नहीं कि क्या इन्हें सहेज पाने की पात्रता है भी या नहीं फिर कौन रखता इनका ध्यान ॥ इनका ध्यान वहीं रखती जिनकी

श्री प्रिया और श्रंगार , मृदुला जी

श्री राधा श्री प्रिया श्रृंगार श्री प्यारी को अदभुत श्रृंगार क्या कहा जावे ॥ प्रियतम निज करों से श्यामा को अदभुत सजावें हैं नित्    ॥ तो क्या आभूषण वसन से सजावें हैं प्यारी को ॥ ना ,वे तो  सजावें हैं निज हृदय के अनन्त भाव सुमनों से ॥ प्रिया जू को हार, किंकणी, कटि मेखला ,नूपुर चंद्रिका ,बेसर ,कंचुकी, चुनरी कुछ भी वस्तु ना जानियो ॥ ये सबन श्यामसुन्दर ही जानियों । जैसै श्री प्यारी के उर भाव ही सखियाँ , सहचरियाँ , किंकरियाँ तथा गोपीगण रूप प्रकट भये हैं वैसै ही तो प्रियतम उर भाव प्रिया को भूषण वसन रूप सेवा करते प्यारी जू की ॥ प्रत्येक नूपुर का मधुरातिमधुर स्वर प्रियतम के हृदय की वाणी ही तो है जो सदा प्रिया के कर्णपटुओं में प्राणेंश्वरी हृदयेश्वरी जीवनी प्राणसारसारा उर विहारिनी हृदय विलासिनी प्राण संजीवनी और न जाने ऐसे कितनी सरस पुकारें सदा सरसाती रहती ॥किंकणियों की सुमधुर रस ध्वनि, केली रस में निमग्न प्रियतम की मधुर रससिक्त श्वासें ही तो हैं ॥ प्रत्येक वसन को स्पर्श प्रियतम का हृदय स्पंदन है ॥ न जाने कितने गहनतम भावों का अंजन प्रिया के नयनों माहीं आंजते प्रियतम । न जाने कौन कौन सी रस लालस

रस और प्यास , मृदुला जी

श्री राधा रस और प्यास रस ही प्यास है और प्यास ही रस ॥कितना विचित्र प्रतीत होता है न । रस और प्यास एक कैसै । जगत में सदा दै्वत ही चहुंओर परन्तु श्री युगल के प्रेम राज्य में दै्वत कुछ होता ही नहीं ॥ जगत में प्यास अलग तत्व है और जल अलग वस्तु ॥ प्यास होने पर जल पी लिया जाता और तृप्ति हो जाती परन्तु श्यामसुन्दर के लिये रस ही प्यास है तो उनका रस कौन ॥ उनका रस तो श्री प्रिया ही हैं न तो वही तो उनके नेत्रों में प्राणों में हृदय में रोम रोम में प्यास बनकर भी समायी हैं । यह कोई काल्पनिक बात नहीं वरन परम सत्य है । स्वयं श्यामा ही नेत्रों से प्यास रूप दृष्टि बनकर प्रियतम नयनों से झलकती हैं और वही रस रूप दृश्य भी हैं ॥ बडी अदभुत स्थिती है यदि गहनता से अनुभूत की जावे तो ॥ भीतर प्यास वही बाहर रस तो रस जब भीतर उतरे तो प्यास ही वर्धित होवे न भीतर ॥ दोनों स्थितियाँ ही नित्य अतृप्त ॥ तत्व ही स्वयं का बोध कर सकता अन्य नहीं तो श्री श्यामसुन्दर में प्यास का अनुभव श्री प्रिया ही कर पाती ॥ शेष तो उनसे रस ही पाते ॥।यही प्रिया रूपी प्यास ही तो नित नव केली उन्मुख करती श्री प्रियतम को ॥ भीतर नव नव तृषा का सृजन

चन्द्र हिंडोला लीला भाव , संगीनी जु

सखी आज एक अपने निकुंज द्वार पर बैठी श्रीयुगल जु की बाट जोह रही है।तनिक विलम्ब से उसकी विरह दशा कुछ गहरा रही है।प्रियालाल जु आते होंगे यह जान सखी खुद को संवरित रखती सम्पूर्ण निकुंज को पुष्पों की लड़ियों व बंदनवारों से सजा चुकी और सुमन सेज पर भी अत्यंत मधुर व सुगंधित पुष्पों व लताओं की झालरें बिछा चुकी।राह तकते उसके नयन विचलित तनप्राणों की झांकी स्पष्ट दिखा रहे हैं।व्याकुल चित्त से सखी द्वार पर दिये प्रज्वलित करने लगती है।विलक्षणता यह कि जैसे ही सखी पहला दिया रखती है श्रीप्रिया चरण प्रकाशित होते हैं और सखी अश्रुपूरित नयनों से श्यामा जु के सरस चरणों का प्रक्षालण करती तनिक उनकी अद्भुत सुंदर मुस्कान का दर्शन करती है और दूसरा दिया पहले के समीप ही रखती है।तत्क्षण उसके तृषित नयनों के दृष्टिपथ में प्रियतम श्यामसुंदर जु के चरणकमल प्रकाशित हो उठते हैं।प्रियतम चरणकमलों को नयनजल से पखारती उनकी मधुरिम चंचल मुखकांति का दरस पाती है।आनंदस्कित पगली अब एक के बाद एक दिया रखती जाती है और उसके समक्ष उतनी बार प्रियालाल जु की नयनाभिराम झाँकी उभरती जाती है।पूरी चार दिवारी जगमगा उठी है और सखी के नेत्रकोरों से अ

लीला रस 6 , संगिनी जु

अति गहन गह्वर वन में अंधियारी रात्रि की छटा बिखरी सी है जहाँ प्रिय सखियों ने अद्भुत भव्य चाँद हिंडोरणे की व्यवस्था की है।ऐसे निकुंज में जहाँ प्राकृतिक चाँद का प्रवेश नहीं वहाँ इस चाँद हिंडोरणे की आभा प्रतिभा का क्या वर्णन हो।हिंडोरणे पर प्रियतम श्यामसुंदर प्रिया श्यामा जु संग गलबंहियाँ डाले मंद मुस्कान की छटा बिखरते परस्पर निहार रहे हैं।इस चाँद हिंडोरणे की चाँदनी इन श्रीयुगल के अद्भुत विशुद्ध प्रेम व रूपराशि के फलस्वरूप आभामंडल का निर्माण कर रही है।पुष्प समान बिखरी सखियों की टोलियाँ ज्यों चाँद हिंडोरणे पर सितारे रूप आभूषण व लटकन बंदनवार सुशोभित हो रही हैं।प्रियालाल जु रसमगे से ललाट व नयनों को मिलाए हुए चाँद हिंडोरणे पर विराजमान हैं और पवन सम सखियाँ इस रस हिंडोरणे को मंद गति से झुला रही हैं।       अद्भुत आभा इस रस राज्य की नयनाभिराम रस झाँकी जो प्यासे दृगों की सूखी बंजर कोरों पर रसबूँद बन इन्हें नम व हरित रस छींटों से डबडबाती चंचलता चपलता से मुस्काती प्रेम सींचिंत रस से झलकाती छलकाती हैं। जय जय श्रीयुगल सरकार जु की !!