मंजु दीदी
राधे राधे
अंतर्मन की गहन बीथियों में
कर मंथन निज विचार भावों का
सम्पूर्ण सरल समर्पण अपने प्रभु को
अर्पण अंत:करण स्थित पावन उद्गारों का
गूढ़ तर्कों के शब्द-जाल में
यदि मन-पक्षी फँस जायेगा
खग-सम उलझ स्वर्ण तार पिंजर में
भवसागर-मुक्त न कभी हो पायेगा
अनवरत भक्ति-दीप-शिखा प्रज्ज्वलित कर
पावन निश्छल हृदय-भवन में
आकंठ-अमृत-सुधा-रस में डूब
प्रस्फुटित हो सुगन्धित ज्योति,कस्तूरी सम मन में
भाव-अंकुर बंजर-हृदय धरा पर
किसलय सम,जिस दिन फूट गया
सरल,निर्मल गुह्य-रस लहलहा उठा
बही भक्ति-प्रेम-रस की,मानों अनत-सुधा
इसी रस को पी मीरा ने बोई बेलि प्रेम की
राधा बनी वामा,भिगो मन-मानस-सरिता
राम को "मरा" कर देने पर भी'मँजु'
भरे भंडार ज्ञान-भक्ति के,मुखर उठी कविता
(डा० मँजु गुप्ता)
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