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Showing posts from October, 2018

भाव लालसा । सँगिनी

हर्ष...उन्माद...रस...आनंद...यही चाह रहे ना तुम सब...पर चाहना करना नहीं जानते...जानते केवल जागतिक व्यवहार...चाहते तो परमानंद हो पर माँगना नहीं आता तो धन... सिद्धि...शांति... सेवा... विद्या... और जाने क्या  क्या... !! और माँगते माँगते इतने स्वार्थी हो जाते हो कि सृष्टि ही माँग लेते...पर होगा क्या ये सब पा जाओगे तो...तृप्ति होगी क्या ... ??हो जाओगे तृप्त तुम सब पाकर... ?? और इन सब माँगों के पीछे माँग एक ही है...प्रसन्नता...आनंद...और प्रेम !! आह...प्रेम... नहीं तुम सब चाहते...पर प्रेम नहीं चाहते...सो पाया हुआ सब भी अधूरा ही लगता तुम्हें... चाहते तुम प्रेम हो...बचपन से लेकर जीवन की इंतहा तक केवल प्रेम...जो तुम्हें माँ के आँचल में मिला था कभी...पर फिर तुम बड़े हो गए...इतने बड़े कि उस निश्चल प्रेम के आँचल से किंचित मुख मोड़ बैठे और खो गए... अब चाह रहे हो वही प्रेम लेकिन आँचल की दरकार नहीं...आश्रय नहीं...आश्रित नहीं...स्वयं से पाना चाहते... अब देखो...सब माँग रहे...माँग रहे धाम जाकर...आश्चर्य होता कि माँग रहे... *किशोरी तेरे चरनन की रज पाऊँ* ... अरे...वो तो दे ही चुकीं...पर क्या देना चाहत

परस्पर सेवक परस्पर सेव्य , संगिनी सखी जू

*परस्पर सेवक परस्पर सेव्य* सुनहली रस की उज्ज्वल सेज पर सजै *दोऊ चंद दोऊ चकोर...* तृषित अधर...उमगित हियहर्षिणी... *करत सिंगार परस्पर दोऊ* इक नयन ते आरसी सुख निहारत...दूजो नैन सलोनी ताम्बुल परसत...करत करत रस सिंगार द्वैजन त्रिजन चौजन ह्वै जात... *परस्पर सेवक परस्पर सेव्य* परस्पर रसभूत सारभूत घनिभूत हुए समात... सेवा लिए थाड़ी सखी...इक रूप चकोर...इक रस विभोर...स्वै विस्मृत अतन सेवा हुइ न अघात...इत भई नीलमणि...हिय सजी...उत भई लाल सुख देत...चरन सौं लालित्य हुइ समात... ... ... "गौर स्याम नैंननि बसैं,झलमलाइ दोऊ रूप। काम केलि विलसत रहैं,अद्भुत सुखद अनूप । कहिवे कौं तौ तीन हैं,सुख मिलि विलसैं एक। तन मन विलसैं दोइ मिलि,मन करि विलसैं एक।।" सेवा करनो चाहूँ...पर सेवन कौ भाव ना जानूं...कैसी सेवा और कैसे सेवूं... साचि कहूँ...तो जे सेवा सेवन के तांई चाह से नाए है सकै...जे ह्वै अचाह सौं...खो जावे ते...विस्मृति में... कैसी विस्मृति...अद्भुत विचित्र स्थिति...जहाँ सेवक सेव्य एक है जावैं...और सेवन सेवन सौं स्वयं की सुद्धि ना रह्वै...किंचित भाव हू तें खोइ खोइ रह्वै... सखी...जे प्रेम प्