खोजा बहुत होशियारों ने
मिला वो मनमौजी परवानों को
खोजा उसे उसुलें इबादतों में
मिला वो अनपढ़ गवारों को
खोजा उसे शहरों के शौर सराबों में
मिला वो सूखे पत्तों के सन्नाटे में
महफ़िलें सजाई उसके आने की
मग़र बंदिशे नहीँ इस तराने की
खोजा उसे हँसते गुल की दुनिया में
मिला वो भीगती अँखियों के पर्दों में
यूँ खोजने से वो ना कभी मिलेगा यारों
दिल से सुनो , मिलता तो वो है ख़ुद के गुम हो जाने में
जब तलक़ हसरतें क़तरा भी तुम हो
तब तलक़ यें हुस्न के पर्दे उठने वाले नहीँ
जब जिस जगह , जब तक तुम में तुम भी नहीँ
बस वहीँ उसी जगह है वहीँ , बस वही , सिर्फ़ वहीँ !!!
ग़र शोर मचा कर भी कहो मिलने की इस फितरत को
कोई सुनने वाला नहीँ , क्योंकि ख़ुद को खोने वाला ही नहीँ ...... तृषित
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