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आज पिया ने फिर चौकाय दियो , लीला

आज पिया फिर से चौकाए दियो

आज हम सब सखियन कोमल कोमल अति सुकोमल राधा जी को श्रृंगार कराने बैठीं।
इतनी प्यारी राधिकारानी कि छू लेने मात्र से ही मैली हो जाएँ ।
ऐसी सुंदर अति सुंदर कि श्रृंगार से पहले ही काला टिका लगाए दियो।लगा कि उनको जैसे छूअन भी चुभती ही होगी इस दासी के हाथों की।
श्रृंगार की आवश्यकता तो नहीं ।श्रृंगार की वस्तुओं में भी ऐसा नहीं कि उनकी सुंदरता को बढ़ा कर चार चांद लगादें।खुद अपनी ही सुंदरता को बढ़ाते हैं ये राधा को छूकर।
गोरी गोरी अति भोरी सी राधा
नीले लाल रंग के लहंगे चोली में
सकुचाई सी बैठी हैं जैसे चाहती हों कि कब ये सखियां श्रृंगार करें और मैं कब जल्दी से कान्हा से मिलुं।
उनके चेहरे के ऐसे हाव भाव से हम सब सखियन का हृदय भी अति व्याकुल।
पता है क्यों
वो प्यारो मतवारो सो छलिया नटवर नंदकिशोर कहीं दूर बैठ बंसी की धुन बजाए है।खुद की और हम सब सखियन की बेचैनी को बढ़ाए है।तो सोचो ऐसे में राधा को कौन धीर बंधाऐ।
ललिता सखी ने जल्दी से केश श्रृंगार कियो।माथे टीका
कानों झुमके
नाक में नथ
और छोटी सी बिंदिया ।।अहा ।।
गले में मोतियों के हार
हाथों लाल नीली चुड़ियां बाजुबंद
कमर पर कमर बंध सुहाए है।।बलिहारी।।
पैरों में पाजेब ।।हाए।।
हाथों में अंगुठी
पैरों की अंगुलियों में नूपुर।।
सब मन को भाए हैं ।
अब क्या कहुं
राधा जु की आँखों में वो काजल की धार ।।आहा ।।
बैठी सोच रही क्या करेगी कान्हा का हाल।
ऐसी प्यारी प्यारी जग से न्यारी
हम सखियन की दुलारी दुलारी।।
      इतने में विशाखा सखी ने युहीं सहज ही कह दियो
हर्षिणी जाओ श्याम सुंदर को बुला लाओ।मेरे तो जैसे होश ही उड़ा दियो।कुछ कहती इससे पहले ही चम्पा ने कहा जल्दी ।राधा से अब देरी सही न जाएगी।तो चल दी मैं पगली सकुचाई सी।
     देखती हूँ सांवरे सरकार बैठे हैं बंसी कर में पकड़ ।ऐसी धुन छेड़ी है कि मैं कुछ कैसे कहूँ ।नेत्र बंद हैं प्रिए के।उनको मुग्ध देख मैं भी सब बिसराएके वहीं किवाड़ में बैठ गई।ऐसी रूप छटा समक्ष देख लगा मैं अभागिन कैसे यहाँ निकुंज में आ गई।आँखों से अश्रुधार चली सब धुंधला सा गया।खो गई प्रियवर की बंसरी की मधुर धुन में ।
    कब कहाँ और कैसे कितनी देर भई कोई सुध न रही।हाए इतने में किसी ने बाहं पकड़ उठाया तो सिहर सी गई।देखा तो खुद श्याम सुंदर खड़े चलने को कह रहे थे।चुपचाप चलदी उनके साथ । जा देखा तो वहाँ कोई न।न सुकुमारी सुकोमल राधिका और न कोई सखियां।खड़ी सोचुं कि आज तो प्रियाप्रीतम का मिलन न हो सका मेरी भूल के कारण।खुद को कोस रही।श्यामसुंदर से क्या कहूँ कैसे पी से नज़र मिलाऊं।रो पड़ी और पिया खड़े मुसकरा रहे हैं ।जैसे कुछ छुपा रहे हैं ।पूछ रहे क्या हुआ।जैसे सब जानकर भी अनजान बने हैं ।सुन मेरे मुख से सब हंसने लगे।परिहास कर सताने लगे।मैं पगली अब क्या करूँ कुछ भी समझ न पाई।तब व्याकुल हृदय से राधा जु को इक पुकार लगाई।
    राधारानी चतुर सलोनी सांवरे के पीछे ही खड़ी नज़र आईं । सभी सखियां भी वहाँ तभी प्रगटाईं।उन सब को वहाँ देख मैं अति हर्षाई ।हाथ पकड़ दोनों को सामने लियो बिठाई ।देख देख ऐसी रूप माधुरी हृदय में खूब मुस्काई ।मन ही मन में श्याम से तो की शिकायत भरपूर पर राधा प्यारी से तो कुछ भी न कह पाई।आँखें मूंद लियो तब हृदय में  श्यामाश्याम को लियो बसाई।आँखें मूंद लियो प्रियाप्रीतम को हृदय में छिपाई।।
     अरे।।कैसी देखो इस विरहनी की विडम्बना आँखें खोल पछताई।फिर इस जग में ये अभागिन लौट आई।लौट आई।
  काहे श्याम से प्रीत लगाई।
झूठा लगे अब जग सारा
काहे कान्हा ने न रख लियो वहाँ अपने चरणन से लिपटाई।।

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