कमल-दल नैननि की उनमानि। बिसरत नाहिं मदमोहन की मंद-मंद मुसुकानि।। दसनन की दुति चपलाहू ते चारु चपल चमकानि। बसुधा की बस करी मधुरता, सुधा-पगी बतरानि।। चढ़ी रहै चित हिय बिसाल की मुक्तमाल लहरानि। नृर्तय समय पीतांबर की वह फहरि-फहरि फहरानि।। अनुदिन श्रबृंदाबन ब्रज में आवन-जावन जानि। छवि रहीम चित ते न टरति है, सकल स्याम की बानि।। वहिद नन्द नन्दन पर निरन्तर लगन रहने की शुभकामना करते हैं— सुंदर सुजान पर, मंद मुसुकान पर, बाँसुरी की तान पर ठौरन ठगी रहै। मूरति बिसाल पर, कंचन की माल पर, खंजन-सी चाल पर खौरन खगी रहै।। भौहैं धनु मैन पर, लौने युग-नैन पर, सुद्धरस बैन पर वाहिद पगी रहै। चंचल से तन पर, साँवरे बदन पर, नंद के नँदन पर लगन लगी रहै।। रसिक रसखान जी तो पशु-पक्षी-पत्थर बनकर भी कन्हैया के दास रहना चाहते है— सुनो दिलजानी, मेरे दिल की कहानी, तुम दस्त ही बिकानी, बदनामी भी सहूँगी मैं। देव पूजा ठानी, और निवाज हूँ भुलानी, तजे कलमा-कुरान सारे, गुनन गहूँगी मैं।। साँवला, सलोना, सिरताज सर कुल्लेदार; तेरे नेह-दाघ में निदाघ ही दहूँगी मैं। नंद के कुमार, कुरबान ताँड़ी सूरत पर ताँडे नाल प्य