राधे राधे
"कौन कमी मेरे घर माखन की" "नौ लख गैया" "गो रस भीगी धरती"- मैया बार बार समझाती रही, फिर भी माखन चुराना, क्यों? करूणा के सागर अपने लिये नहीं निर्धन सखाओं के लिये चुराते हैं। ब्रज में श्री कृष्ण जब तक रहे कभी पादुका धारण नही की, कभी रत्न जड़ित आभूषण, कभी सुन्दर वस्त्र नही पहने,क्यों ? क्या कोई कमी थी नन्द बाबा के ऐश्वर्य में? अधिकांशतः सखा ऐसे थे गोपाल के, जो नितांत गरीब थे जिनके पास पहनने को वस्त्र तक नही थे, वो पादुका कहाँ से पहनते? जब सारे सखा पादुकाहीन,तो उनके प्राणप्रिय सखा श्री कृष्ण ही क्यों पहने?
एक अति ही प्राण प्रिय सखा थे श्री कृष्ण के, मधुमंगल। बहुत प्रेम करते थे गोविंद मधुमंगल से।मधुमंगल को सदेव अपने साथ रखते थे। एक दिन गाय चराते समय गोविंद ने सब सखाओं से कहा कि कल सब अपने अपने घर से प्रसादी लेकर आयेगे। हम कल सबके घर की प्रसादी पायेंगे। ऐसा सौभाग्य, सब सखा खुश हो गये। सब सखा नित्य ही अपने कलेवे में से पहले गोपाल को पवाते फिर स्वयं पाते आज तो गोविंद ने स्वय ही माँगा है। प्रसन्नता से फूले सब सखाओं के पाँव जमीन पर न पड़ रहे।
घर पहुंच कर सबसे पहले सब सखाओं ने अपने अपने घर घोषणा कर दी-
"कल लाला ने बोला है हमारी प्रसादी पायेंगे तो बढिया से बढ़िया भोग बनईयो मैया"
मैया तो रोज ही कलेवा इसीलिये स्वादिष्ट बनाती है कि खाते समय गोविंद को हमारी याद तो आ जाये, चाहे एक क्षण के लिये ही सही। आज तो स्वयं गोविन्द ने कहा है। प्रसन्नता से भरकर सब मैयायें रात से ही लग गयी सुन्दर स्वादिष्ट भोग तैयार करने में।
मधुमंगल उदास मन घर पहुंचे।मैया को संकोच से बोल नही पाये कि गोविंद ने प्रसादी के लिये बोला है क्योंकि ज्ञात है स्थिति घर की, मैया कहाँ से लायेगी? किन्तु प्रेम भाव से भरे इस नि:स्वार्थ प्रेमी को, रात भर नींद नही आयी। प्रात: भोर की बेला में माता ने जगाया गाय चराने के लिए जाने को तो बहाना बना दिया कि आज कोई जा नही रहा।
पर मन तो गोविंद के पास पडा है नहीं रूका जा रहा। अंततः उठ खड़े हुये और मैया से पूछा-
" मैया कछु प्रसाद बनायो है का?" मैया बोली बेटा नन्दरानी के यहाँ से थोडी सी छाछ लेके आयी परसो उसी की कढी बनायी,वो ही रखी है मटकी में।
ओह!! मधुमंगल का बालमन पराकाष्ठा की सीमा तक नैराश्य में पहुँच कलपने लगा। नहीं जाता? पर बिना गोविंद के दर्शन के भी तो चैन नही आता मन को। विवश हो कढी की मटकी उठाई ओर चल दिये वन की ओर।
सभी ग्वाल वाल गोविंद को घेर के बैठे है, अपने अपने प्रसाद को चखने का विनम्र निवेदन कर रहे है, पर गोविंद के व्याकुल नयन तो मधुमंगल को ढूँढ रहे हैं। दूर से आते मधुमंगल को देखा तो ठाकुर जोर जोर से बोलने लगे-
"आय गयो देखो मेरो मधु आय गयो, ला भईया तेरे प्रसाद की प्रतीक्षा में तो हमने प्रसादी पावनों ही अबँहू शुरू नाय करो। तुरत दिखा क्या भेजो है मैया ने"
मधुमंगल ने मटकी पीछे छुपा ली, संकोच से जमीन की ओर देखने लगे। मधुमंगल को कुछ नही सूझ रहा क्या बोले, लम्बा मौन, दृष्टि इधर उधर, नयन चोर से। इतने में ही झपट कर छीन ली प्रिय मित्र गोविंद ने मटकी मधुमंगल के हाथ से और भोग लगाने लगे। किंतु यह क्या?? मटकी के अंदर इतने भाँति भाँति के स्वादिष्ट व्यजँन? मधुमंगल हैरान और गोविंद के मुख पर मीठी-मीठी मृदुल मुस्कान।
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