पीताम्बर की एक एक सिलवट रस की गहन धारा है जो रसार्णव के ऊपरी तल पर सूर्य रश्मियों की भांति किलोल कर रही है ॥ यह सुमधुर पीताम्बर आह ...कितना मधुर है यह जितना निरखो उतना ही डूबता जाता हृदय इस रस आवर्त की गहनता में ....॥।मन ही नहीं कि आगे भी बढा जावे ॥रस का लावण्य का सार सा, मनहर का मनहर पीताम्बर ॥ कटि से आबद्ध चरणों को स्पर्श करता ......॥।चरण आहा समस्त चराचर की परम विश्राम स्थली ये हरि चरण ॥ ये तिरछे चरण न जाने कौन कौन से भावों का विस्तार करते ॥ दास्य भी इन्हीं में तो लोकपावन माधुर्य भी इन्हीं में ॥ गोपांगनाओं के विरह संतप्त हृदयों का ताप हरने वाले परम सुशीतल कमल भी यही ॥।हृदय में न जाने कितने रस भावों का सहज ही उदय कर देने वाले रसिकशेखर के ये तिरछे चरण ॥ भक्तो की परम निधि तो रसिकों का जीवन प्राण ये परम सुकुमार अरुणिम चरण पल्लव और इनसे लिपटे ये पुष्पों के रसीले नूपुर ॥ इन रस नूपुरों से झंकृत होती मधुर झनकार आहा ....जरा कल्पना तो करें कि कैसी रसमयी झंकार होती होगी रसराज के चरण नूपुरों की ॥ प्राणों को , रोम रोम को रस में डुबो देने वाली मधुर झनकार ॥ न जाने किन किन रसिकों के रसभाव कोमल पल्लव