राधिके! तुम मम जीवन - मूल। अनुपम अमर प्रान - संजीवनि, नहिं कहुँ कोउ समतूल।। राधिके!... जस सरीर में निज निज थानहिं सबही सोभित अंग। किंतु प्रान बिनु सबहिं ब्यर्थ, नहिं रहत कतहुँ कोउ रंग।। राधिके!.... तस तुम प्रिये! सबनि के सुख की एकमात्र आधार। तुम्हरे बिना नहीं जीवन - रस, जासौं सब कौं प्यार।। राधिके!.... तुम्हारे प्राननि सौं अनुप्रानित,तुम्हरे मन मनावन। तुम्हरौ प्रेम - सिंधु - सीकर लै करौं सबहि रसदान।। राधिके!.... तुम्हरे रस भंडार पुन्य तैं पावत भिच्छुक चून। तुम सम केवल तुमहि एक हौ, तनिक न मानौ ऊन।। राधिके!.... सोऊ अति मरजादा, अति संभ्रम - भय - दैन्य- सँकोच। नहिं कोउ कतहुँ कबहुँ तुम - सी रसस्वामिनि निस्संकोच।। राधिके!.... तुम्हरौ स्वत्व अनंत नित्य, सब भाँति पूर्न अधिकार। कायब्यूह निज रस - बितरन करवावति परम उदार।। राधिके!.... तुम्हरी मधुर रहस्यमई मोहनि माया सौं नित्य। दच्छिन बाम रसास्वादन हित बनतौ रहूँ निमित्त।। राधिके!....