Skip to main content

Posts

Showing posts from September, 2016

युगल प्रेम भाव भाग-5 , संगिनी

युगल प्रेम भाव-5 "मेरे दिल की कभी धड़कन को समझो या ना समझो तुम मैं लिखती हूँ मोहब्बत ️पे तो इकलौती वजह तुम हो तुम" मोरपंख पंचरंग लंहगा चोली सजी हैं राधे आज लगती बड़ी अलबेली भोली सखियों संग प्रेम रंग में रंगी खेल रहीं आज आँख मिचोली कुंजों को सजातीं अपनी मधुर हंसी और नव नवेली चितवन से मधूबन को महकातीं गातीं बजातीं सखियन संग खेल खेल में मधुमति प्रकृति के सौंदर्य को लजातीं बाहर राधे भीतर श्याम जु को समाए मोहन मोहन हर श्वास से पुकारतीं सखियन को प्रेम रस का पान करातीं अहा!!आज श्यामा जु निकुंज में सखियों के साथ आँख मिचोली खेल रहीं हैं।दूर से ही श्यामसुंदर जु को अपनी ओर भाग कर आते हुए श्यामा जु वहीं थिर हो जातीं हैं।उनके हृदय से अनुराग छलक रहा है आँखें नम हो रहीं हैं और एक उड़ान भर श्यामसुंदर जु को बाहों में भर लेना चाहतीं हैं।लेकिन ना जाने क्यों ठहर गईं हैं।शायद सखियों के साथ ने उन्हें रोक लिया है। जैसे ही कुछ सखियों की नज़र श्याम जु पर पड़ती है वे एक एक कर प्रिया जु के आगे पीछे आ खड़ी होती हैं और उनको मध्य में छुपा लेती हैं।भला ऐसे कैसे कन्हैया को बिन परिश्रम ही श्या

युगल प्रेम भाव संगिनी भाग 2

युगल प्रेम भाव-2 "तयशुदा मुलाक़ातों में वो बात नहीं बनती क्या ख़ूब था राहों में अचानक सामने से आना तेरा" हाँ सच ही तो कहाँ कब तन्हा रखा तूने मुझे मेरे एकांत में सदा संग आनंद बन अकेलेपन में मेरे अपने मेरे संग तुम साथ ही तो रहे हो सदा सदा संग तभी तो संगिनी तुम्हारी संग संग डोलूं साथ ना छोड़ूं पल ना भूलूं जब चाहूं तब पा लूं क्षण भर के लिए नहीं जुदा पल भी ना सहुं विरहा तुम आ ही जाते हो पा जाती हूँ तुम्हें खोई खोई सी समा जाती हूँ तुम में एहसास के आलिंगन में जैसे खड़े हो तुम समक्ष मुझमें चलते चलते आ जाती आगोश में तुम महक में धरा अंबर प्रकृति में आँख मूंदे सिमट कर सो जाती हूँ तुम में हाँ सच ही तो             आज निकुंज में एक पगली श्याम दीवानी सखी राधे जु के अंग का वस्त्र लिए कुछ मोर पंख और पुष्प एकत्रित कर रही है।नीले आसमान सी चुनरी पर रंग बिरंगे चमकीले मोरपंख सजाती व सुंदर सुगंधित पुष्पों से ज्यों सितारे से लगा रही हो।अधरों पर मंद मंद मोहन मुस्कान व बड़ी बड़ी कजरारी श्यामल आँखों में श्यामसुंदर व श्यामा जु की मुर्त लिए वो चलती जा रही है कि अचानक अपने भावों में खोई

युगल प्रेम भाव भाग 4 , संगिनी

युगल प्रेम भाव-4 "मत मेरे दिल से पूछो ये प्रेम की कहानी विरहा की पीर जाने जो विरहा की दीवानी घनश्याम के विरह में ये दिल हुआ दीवाना परवाह क्या किसी की रूठे जो ये जमाना" आज निकुंज में कन्हैया संग सब गईयां व बालसखा कब के लौट चुके हैं।राधे जु व उनकी सखियां भी।कोई नहीं है वहाँ सिवाय कजरी और संगिनी के।कजरी आज श्यामसुंदर जु संग खूब मस्ती करने के बाद लौट कर गाँव में जाना ही नहीं चाहती। विरहन सखी के हृदय को स्पष्ट रूप से समझने वाली कजरी आज उसे निकुंज में यहाँ वहाँ खूब दौड़ा रही है।दौड़ते दौड़ते गहन निकुंज में बहुत दूर निकल आने पर थक हार कर सखी यमुना जु के किनारे बैठ जाती है। नीले आसमान तले यमुना जु का स्वच्छ जल आँखों को एक जगह टिकने ही नहीं दे रहा।जल में खिले कमल रंग बिरंगे पुष्प एक एक कर सटे से हुए प्रतीत हो रहे हैं।बेहद खूबसूरत लग रहे हैं।मधुर शीतल पवन से हल्के हल्के हिलते डुलते ये पुष्प एक दूसरे को प्रेम भरा स्पर्श दे रहे हैं।उनकी परस्पर घुलती महक से रोमांच हो रहा है।गहरी डूबती उठती तरंगें व कल कल का संगीत शांत निकुंज को जैसे न्यौता ही दे रहा हो।जैसे कुछ अद्भुत सा घटित होने जा

युगल प्रेम भाव संगिनी भाग 2

युगल प्रेम भाव-2 "तयशुदा मुलाक़ातों में वो बात नहीं बनती क्या ख़ूब था राहों में अचानक सामने से आना तेरा" हाँ सच ही तो कहाँ कब तन्हा रखा तूने मुझे मेरे एकांत में सदा संग आनंद बन अकेलेपन में मेरे अपने मेरे संग तुम साथ ही तो रहे हो सदा सदा संग तभी तो संगिनी तुम्हारी संग संग डोलूं साथ ना छोड़ूं पल ना भूलूं जब चाहूं तब पा लूं क्षण भर के लिए नहीं जुदा पल भी ना सहुं विरहा तुम आ ही जाते हो पा जाती हूँ तुम्हें खोई खोई सी समा जाती हूँ तुम में एहसास के आलिंगन में जैसे खड़े हो तुम समक्ष मुझमें चलते चलते आ जाती आगोश में तुम महक में धरा अंबर प्रकृति में आँख मूंदे सिमट कर सो जाती हूँ तुम में हाँ सच ही तो             आज निकुंज में एक पगली श्याम दीवानी सखी राधे जु के अंग का वस्त्र लिए कुछ मोर पंख और पुष्प एकत्रित कर रही है।नीले आसमान सी चुनरी पर रंग बिरंगे चमकीले मोरपंख सजाती व सुंदर सुगंधित पुष्पों से ज्यों सितारे से लगा रही हो।अधरों पर मंद मंद मोहन मुस्कान व बड़ी बड़ी कजरारी श्यामल आँखों में श्यामसुंदर व श्यामा जु की मुर्त लिए वो चलती जा रही है कि अचानक अपने भावों में खोई