प्रेम यदि शाश्वत सत्य, देह से परे
आत्मा से आत्मा का मिलन न होता
तो रेगिस्तान से वृंदावन न आता
ईश-स्वरूप अराधना न पाता।
प्रेम-भक्ति की चरम परिणति
जब तक मिलन न होगा, वहीं
जहाँ प्रेम गया, मै आऊँगी
भागवत यात्रा बन जाऊँगी
तब मैं कहाँ शेष रह जाऊँगी
तुम मैं, मैं तुम-परार्थ जीवन।
निष्काम प्रेम संग हो एकाकार
तुम में ही विलीन हो जाऊँगी।
(डाॅ.मँजु गुप्ता)
Comments
Post a Comment