*उड़ी हुई सुगन्ध* भीतर के चन्दन स्वरूप श्रीयुगल रसिले है सो भीतर चन्दन को घीसा नहीं जाता फुलवत गीली मधुरिमा उसे अन्य ताप स्पर्श से सुगन्ध होकर उड़ती है । अर्थात भीतर चन्दन घीसते नहीं है , मथन करते है ...रसिले सुगन्धित फल की तरह । कुछ फल सुगन्ध चुरा लेते है जैसे आम। ऐसे ही चन्दन की भीगी फूली वल्लरी रस मन्थन से आह्लादित होकर भीतर के सम्पूर्ण दर्शन क्षेत्र अर्थात निकुँज को अपनी शीतल सुगन्धों से सजा रही हो । फूली हुई वल्लरी का रस फल वत मैन सुगन्ध होकर टपकती सुंगधे । भीतर रँग रसवत है अर्थात तरल और रस सुगन्धों से भरा है ।सुगन्धे नासिका को तरल मधुता सुलभ कराने वाला रस है । नासिका पर झूमती बेसर पिघले बिना कैसे रहें , यहाँ कुंदन-रत्न मणियाँ भी चन्दन होकर पिघलकर भीतर-बाहर दौड़ना चाहती है नासिका सुगन्ध भरें फूलों में जीवन लेती हुई तितली(अलि) रचना चाहती है । नाचती रँगीली की रसिली तितलियाँ सुगन्ध होकर चिपटी हो इस कन्दरा (नासिका) कुँज के द्वार पर कुछ भीतर और बाहर ललित धुँध होकर । कन्दराओं के भीतर चिपटी चमगादड़ का भाग्य देखकर मैं तितली कौनसी हद से अपने हिय फूल के भीतर यूँ चिपटी रहूँ । कोई तितली कृष्ण न