जो भी दिल में है तुम से ही है
अपनी हर तलब हर गुस्ताखियाँ तुमसे है
आओ और लें जाओ जो भी दिल करें
अब तो दुआओं की , गुनाहों की छटाई भी नही होती
हम क्या क्या कहे
क्या क्या ना कहे
कहे भी तो क्यों कहे
जो ना कहा उसे भी ...
सुन तो लेते हो ।
लगता है बड़ी दीदारी से
तुम मेरे तमाशे को तुम
सच सा निभा रहे हो ।
एक गुस्ताख़ समझो
तलब है बस
यें उल्फ़त कभी सच
और ज़िन्दगी को तमाशा बना दो
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