*विदग्धमाधवे* "गुन की बात राधे तेरे आगे को जानैं जो जान सो कछु उनहारि। नृत्य गीत ताल भदेनि के विभदे जानें कहूँ जिते किते देखे झारि।। तत्व सुद्ध स्वरूप रेख परमान जे विज्ञ सुघर ते पचे भारि। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा कुंजबिहारी नैंक तुम्हारी प्रकृति के अगं अगं और गुनी परे हारि।।" अतिरस निपुणा कौशला श्यामा जु रतिनेह से सम्पूर्णतः रचीपची अनंत गुणों की स्वामिनी व सुशीला करूणाशीला हैं...प्राणप्रियतम की हियमणि...संजीवनी...प्राणपोषिणी...प्रियतम के निश्चल प्रेम में पगी सर्वरसों से परे अतीव रसाधिष्ठातरी हैं जो सर्वगुणों को धारण ही करतीं हैं प्रियतम सुख हेतु...अहा... सखी री...सौंदर्य की अभूतपूर्व सुखराशि श्रीश्यामा जू प्रियतम व सखियों को अपने अनंत गुणों से...गुणवत्ता से चिरकाल से चिरकाल तक मोहित किए रहतीं हैं...विदग्धा श्रीश्यामा जू पति रति मन हरिनी रासविलासिनी हैं जिन्होंने प्रेमावेश में नील निचोल धारण कर रखा है...वे प्यारी सुकुमारी वृष्भानू दुलारी अपनी चारु चन्द्रिका के रस में प्रियतम को सदा भिगोए हुए रहती हैं...प्रियतम श्यामसुंदर ही उनके ललाट पर मुकुट सम विराजित रहते हैं और वह