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तुमसे हमको एक

तुमसे हमको एक ---

हे माधो .....
कमलन को रवि एक है , रवि को कमल अनेक ।
हमसे तुमको बहुत हैं , तुमसे हमको एक ।।

प्रियतम् , मेरे गोविन्द ! होंगे लाखों , करोड़ों या अनगिनत चाहने वाले आपके । पर सब समझ भी क्यों नहीँ सुनते हो आप । यहाँ तो मेरे सब केवल आप हो । मेरी देह , मन , आत्मा सब आपकी । यें भीतर जाती , बाहर आती सांसें आपकी । यें जीवन आपका । मैं हूँ तो तुमसे हूँ , कहाँ हूँ ? कब तक हूँ ? ...... इसमें भी आप का ही कारण-हेतु निहित है ।
फिर यें आप का रूठना , हाय । धडकन तो है , साँसे भी है , प्रियतम् को छूकर आई महक नहीँ । जीवन है पर वो आपके लिए बहती आँखें नहीँ । क्यों ?
       कमल के लिए सूर्य ही उसके होने का हेतु है । कमल खिलता है , सूर्य हेतु । सूर्य को पाकर । उससे ही प्रकाश लें , उसी के नशे में चूर । कमल के लिए सूर्य का कोई विकल्प नहीँ । कमल को प्रेम है , अपने सूर्य से । सूर्य के लिए अनेकों कमल है , सब उसके प्रकाश से ही खिलें है । वही ऊर्जा स्रोत है । हर कमल को सूर्य की चाह है , सब को प्रेम है सूर्य से । सबके लिए वही सब कुछ है । हर कमल सूर्य को अपना ही समझ उसकी आभा में खिल उठता है । सूर्य के लिए असंख्य कमल होंगे , पर कमल के लिए एक ही सूर्य है , दूसरा सूर्य कहाँ से वो लाएं ।
ऐसे ही आप हो !  हमारे जैसे , या कहो तो हमसे भले ही तुम्हें चाहने वाले बहुत है मेरे मोहन पिया । बहुत से महापुरुष ,ज्ञानी और प्रेमी तुम्हारे चाहने वाले है , पर यहाँ कोई और मोहन नहीँ , कोई दूजा गोविन्द नहीँ ।  लाखों चाहने वाले है आपके , हमारे केवल तुम ही हो । होंगे तुम्हें बहुत प्रेमी , प्रेम करने वाले , तरह तरह की सेवा लिए सदा खड़े । पर यहाँ केवल तुम हो , सिर्फ़ तुम । कोई और है ही कहाँ तुमसा । विकल्प तुम्हारें पास है , हमारे पास तुम्हारे अतिरिक्त कुछ भी नहीँ । सूर्य भी तो सभी कमल पुष्पों के प्रेम को समझ सबको समान भाव से प्रेम कर रहा है , सब के लिए ही तत्पर है ।
पर आप ..... 
याद रखना आप भी , और मैं भी । होंगे बहुत आपके अपने , पर कमल की तरह निर्विकल्प यहाँ और कोई नहीँ तुमसा । हर कमल की आरज़ू में एक ही सूर्य है , तो यहाँ बहुत से प्रेमी होने पर भी प्रियतम् तो केवल तुम ही मेरे मोह.....    !!!!
बस तुम ! सिर्फ तुम ! और तुम बिन जिया जाएं कैसे .... सत्यजीत "तृषित"  !!! जय जय श्यामाश्याम !!!

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