राधे राधे
तुम्हारी चरण-वंदना मेरा जीवन
स्व बिसरूँ,स्मरण रहें सतत युगल चरण
आगत से अनभिज्ञ
रेत के महल बनाते निशि-दिन
ज्ञान हीन, जड्र, कस्तूरी-मृग सम
ढूँढेते तुमको इत-उत प्रतिदिन
न भटकें, युगल-चरण में रम जाये अंतर्मन।
सुख प्रदाता दुःख हर्ता भी तुम्ही
विचार भाव कर्म प्रेरक-संकल्प
मैं निरीह, मेरा सम्बल भी तुम्ही
विस्मरण कर भेद सुख दुख का
गहू उर-अटल विश्वास दृढ़ लगन।
रेगिस्तान मरूस्थल से जीवन में
कभी मीठा-जल-प्रपात सी तुम
कंटीली चुभन तप्त जग-धूप में
कोमल कुसुम, मृदुल छाया सी तुम
सुधिहीन सबसे, सुधि में हो बस युगल चरण।
दीप बन घन तिमिर करती हो दूर
तुम्हारी क्षीण सी कृपा संग भी
जीवन आधार पायेगा ज्यौं
मौन गहन अँधेरे सन्नाटे को बींधती
अंतर्ध्वनि आलौकिक कर रही मार्ग दर्शन।
(डाॅ.मँजु गुप्ता)
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