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Showing posts from January, 2017

रसीलौ!नैनन बतियावै। प्यारी जु

रसीलौ जुगल जौरी रसभरौ निकुंज मा बैठ्यौ है।लालजु के हाथन मा एकौ सुर्ख कछु अधिक ही खिलौ गुलाब है।जा सौ लालजु लाडलीजु के कपोलन,अधरन कू गुदगुदाय रह्यौ। या ऐसौ कह लिजौ मनुहार कियै रह्यै-लाडली जु नेक नैनन मा निहार ल्यै दैओ। लाडली जु पलकन कू उठाय या कै दायँ बायँ देखै,किंतु नैन नाय मिलावै,या सौई लाल कौ आतुरता ओरि जोर सौ बढाय रह्यी। लालजु कौ धीर कौ बाँध टूटवै कौ ह्यै रह्यौ,लाडली जु मानै ही नाय...अबकि बैर तौ लालजु बहौतहि अधीर ह्यै गयै,या नै जौर सौ लाडली जु कौ खैच ल्यी,दौनो हाथन मा लली कौ मुख लैके जबरन वा कै अधर चूम ल्यै।अली नैनन मा नैन मिलाय कै रस लूटवै लगौ,गुलाब छाड कै कमलनी पकर लयी.... रसीलौ!नैनन बतियावै। मनुहार कियै लली नैक निहारौ,लली गुलाब सौ सहलावै। दैखे इत्त उत्त दैखे ना नैनन,अतिहि लाल कू तरसावै। टूट्यौ बाँध करि लाल जौरि,खैच अधर धरि जावै। छाड गुलाब दयौ री प्यारी,कर कमलनि कौ पावै।

लली निरखै छिप मौहन , प्यारी जु

लाडलीजु वृक्ष की इस अधिक नीची से डाल से झुक झुक,झाँक झाँककर सामने जरा दूरी पर खडै लालजु को देख रही है।जरा सा देख फिर छुप जाती है।सामने लालजु अपनी चिर परिचित त्रीबंकी अदा से खडे है। अबकी बार जो लाडली जु छुपके पुनः लालजु को देखने लगी तो लालजु दीखे ही नही।एक पल मे लाडली जु ने सामने सब ओर दृष्टि फिरा कर देख लिया।अब लालजु के न मिलने पर लाडली जु अकुलाकर ज्यौ ही पीछे मुडी दो सशक्त भुजाओ ने बाँध लिया इनको,प्रियतम के यू अचानक जाकर आने से  लाडली जु भी बिना लज्जा संकोच किये स्वयं को बिसार दी लालजु के अंक मे.... लली निरखै छिप मौहन। पुनि निरखै पुनि छुपिहै,ठाडौ बंकी अदा सौहन। अबकै छिपी नाय दीख्यौ,लली अधीर भई मुडिहै। पाछै खड्यौ भरी भुजही,प्यारी लाल अंक ढुरिहै।

लली लाल दुई सेज सजे बैठे , आँचल जु

युगल लाडले निकुंज की इस शैय्या पर ऐसे बैठे है,की सिराहने के दाई ओर लाल जु व बाई ओर लली जु है।दोनो के चरण नीचे लटके हुए पर भूमि को नही छू रहे है।दोनो पैर समांतर नही एक कुछ ऊपर व एक कुछ नीचे है। लाडली जु जरा टेढी सी बैठी है और लालजु इनकी कमर पर लुढकै से बैठे है। सामने पुष्प की कुछ पंखुडियाँ पडी है।जिनसे पूरी तल्लीनता,गम्भीरता के साथ लाडली जु कोई आकृति बना रही है।लालजु भी बडे ध्यान से देख रहे लाडलीजु द्वारा बनाई जा रही आकृति,बीच बीच मे कुछ झाँकते हुए से ललीजु के मुख को देख लेते है,नयनो मे न देख पाने पर पुनः अनमने से हो आकृति देखने लगते... आकृति के पूर्ण होते ही लालजु मुस्कुराकर लली के झुमके की ओर संकेत किये...एक स्वीकृती भरी मुस्कुराहट से लली जु नयन झुका ली।अब लाल जु की बारी,ये चतुर शिरोमणी कैसे यह सुनहरा अवसर छोडते भला।झट से लगे पुष्पो की पंखुडियो से आकृति बनाने और बना दीये नयन।अहा,नियमानुसार लाडली जु को अपने नयनो के संकेत से बताना लालजु ने क्या आकृति बनाई। लालजु परम प्रसन्न इनको लली जु के नयन सिंधु मे डूबने का मौका जो मिल गया। लली जु धीरे धीरे सकुचाती हुई सी पलको को उठा रही है।और 

मोरकुटी युगल लीलारस-22 , संगिनी जु

मोरकुटी युगल लीलारस-22 जय जय श्यामाश्याम  !! श्यामा श्यामसुंदर जु भावभावित होकर हंस हंसिनी द्वारा गाए जा रहे परम सुखमय पद्दराग आदि सुन रहे हैं।सखियों व श्यामा श्यामसुंदर जु की रूचि देख हंस हंसिनी भी अति उत्साहित हुए आगे गाने लगते हैं। पहले ही की तरह हंस गाता है श्री राधिके जु के हक में- "हे प्रियतमे राधिके!तेरी महिमा अनुपम अकथ अनन्त। युग-युग से गाता मैं अविरत,नहीं कहीं भी पाता अन्त।। सुधानन्द बरसाता हिय में तेरा मधुर वचन अनमोल। बिका सदा के लिये मधुर दृग-कमल कुटिल भ्रकुटी के मोल।।  जपता तेरा नाम मधुर अनुपम मुरली में नित्य ललाम। नित अतृप्त नयनों से तेरा रूप देखता अति अभिराम।।  कहीं न मिला प्रेम शुचि ऐसा,कहीं न पूरी मन की आश। एक तुझी को पाया मैंने,जिसने किया पूर्ण अभिलाष।। नित्य तृप्त,निष्काम नित्य में मधुर अतृप्ति मधुरतम काम। तेरे दिव्य प्रेम का है यह जादूभरा मधुर परिणाम।।" यह सुन हंसिनी हंस से नयन मिला कर फिर झुकाती है और प्रियतम श्यामसुंदर जु की तरफ से गाना आरम्भ करती है- "माधव!मन नहिँ मानत बोध। हौँ समुझाइ थक्यौ,दौरत नित प्रतिपल तजि अवरोध।। रूप-अमिय-रस-प

मोरकुटी युगलरस लीला-21 , संगिनी जु

मोरकुटी युगलरस लीला-21 जय जय श्यामाश्याम  !! नृत्य क्रीड़ा के बाद युगल हंस हंसिनी के जोड़े की रसक्रीड़ा में निमग्न हैं।हंस हंसिनी बारी बारी से श्यामा श्यामसुंदर जु के प्रति गीत गा रहे हैं।हंस श्री राधे जु के लिए तो हंसिनी श्री कृष्ण हेतु।मोरकुटी यमुना पुलिन पर रसक्रीड़ा को आगे बढ़ाने हेतु युगल को जड़ता से निजात दिलाने के लिए इस लीला का अवतरण सखियों का तत्सुख नेह ही है जो हंस हंसिनी के रूप में युगल प्रसाद ही है।          तो पहले हंस गा उठता है प्रिया जु के विशुद्ध प्रेम की अद्भुत झाँकी अनुरूप- "पूर्ण त्यागमय सर्वसमर्पण का जिनके अनन्य अभिलाष।  निज-सुख-वाञ्छा-लेश-गन्ध का त्याग,सहज मन परमोल्लास।। प्रियतम-सुख ही एकमात्र है जिनके जीवन का आनन्द।  पूर्णानन्द ममत्व नित्य प्रियतम-पद-पंकज में स्वच्छन्द।।    प्रियतम मन से जिनका मन है,प्रियतम प्राणों से हैं प्राण। प्रियतम सेवारत नित श्रवणेन्द्रिय त्वग्-दृग रसना-घ्राण।। नित्य कृष्ण-सेवा-रसरूपा सर्वसद्गुणों की जो खान। सर्वसुखों के दाता को भी देती अहंरहित सुखदान।। ऐसी प्रियतम-सुख-स्वरूपिणी,कृष्ण गतात्मा निरहंकार। गोपीजन है भरा हृदय शुचि

प्रेमी जुगल नैन डूबत भूलै , आँचल जु

हमारे युगल सरकार,कितने प्रेमी है न ये।परस्पर नयनो मे डूब जाते है,तब कितना समय हुआ,कहाँ हुआ कुछ सुध न रहती है। जब युगल परस्पर नयनो मे डूबते तरते रहते है तब पलक गिरना युग सा हो जाता है। एक लीला भाव झाँकी देखिए,भाव बहुत बहुत छोटा,पर आप जी लिजिए इसे... एक हल्के गुलाबी कमल पुष्प की मूल को युगल करो ने परस्पर थाम रखा है।यह लाल लाडली के इतने समीप है की युगल अधरो को छूता हुआ एक ही समय मे लालजु व लाडली जु दोनो के अधर रस का पान कर रहा है। और लाडले युगल डूब कर खो चुके एक दूसरे के नयनो मे,जड हो चुके।न पलक गिरती है,न पुतलियाँ कोई स्पंदन कर रही।बस देखे जा रहे लालजु लाडलीजु के व लाडलीजु लालजु के नयनो मे.... नयनो मे जल की छटा क्या अद्भुद लग रही,मानो चाँदनी मे लिपटे दो चाँद हो,जो ओस से कुछ भीगे से है।कब से यू खडे है। अरी! कौन सुध दिलाए इनको।आज सब बाँवरी भयी.... प्रेमी जुगल नैन डूबत भूलै,कबहु कहाँ जुग बीते ना जानै। पकंज कर एकहि लिये ठाडै,एकौ कमल करै दुई अधर पानै। नैन चकोर मिलित यौ हौए,पलक गिरै नाहि पुतरिया हिरावै। नयन पात्र द्वो जल भरै ऐसौ,चंद्र चंद्रिका भरै औस लपटावै। रस जड होए जुगल छबी दैखौ,

उठि तरंग दुई कुंजन दरसावै , आँचल जु

इन कुंज निकुंजो का प्रत्येक अणु ही युगल के ह्रदय मे उठी रस तरंग को चित्रित करता हुआ युगल सुख वर्धन करता रहता है। ऐसे ही आज युगल सरकार एक विशाल सरोवर के सम्मुख खडे है,निरख रहे है जल केलि करते श्वेत रंग के युगल पक्षीयो को। लालजु का ध्यान लाडलीजु की बडी सी पलको पर लगा है तब ललीजु अपना एक कर उठाकर उस ओर संकेत करती हुई लालजु का मुख किंचित उस ओर करती है। संकेत समझ युगल जल केलि के लिए प्रस्थान करते है.... उठि तरंग दुई कुंजन दरसावै। ठाडै तडाग प्रीत रस भरै,लली हिय प्रीती उमगत आवै। जलकेलि करत दुई धवल पक्छी,निरख लली कर लाल दिखावै। हिय उठत नव नव तरंग,अणु अणु प्रीत हिय जगावै। चलत करै जल केलि निमित्त,प्यारी रस केलि गुण गावै।

रंग रस दुई अलस भरै , आँचल जु

प्रभात का समय।युगल सरकार शैय्या पर उठ बैठे है।सखियो ने लाल लाडली को एक ही शॉल औढा रखा है।दोनो परस्पर सिमटे हुए से,गहन से गहन आलिंगित हुए बैठे है। युगल चरण कमल परस्पर एक दूसरे के चरण पर रखे हुए है।नयनो से नयन मिले हुए है। यू ही नयनो से रूप सुधा का पान करते हुए,एक ही शॉल मे आलिंगनबद्ध हुए,डगमगी चाल चलते हुए युगल उपवन मे आ पहुचे है। प्रत्येक पुष्प को बडी प्रीती भरी दृष्टि से निहाल करते हुए श्री प्रियाजी कैनयन इस गुलाबी गुलाब पर ठहर गए है।युगल दर्शनो से यह कुछ अधिक ही खिला सा है,उस पर एक बडा काला सा भ्रमर गुनगुन करता हुआ बार बार इस पर बैठ व उड रहा है। लालजु के नयन तो श्री प्रियाजु की ओर ही लगे है। किंतु भ्रमर व पुष्प की क्रीडा से लाडलीजु कुछ स्मरण कर किंचित टेढे से नयन कर लालजु की ओर देखती है,इससे लालजु के नयन भी इस पुष्प की ओर आकृष्ट हो गये। कितने ही समय युगल चित्रलिखित से इस प्रेम क्रीडा को निहारते रहे,मानो स्वयं को ही इस क्रीडामय पुष्प व भ्रमर मान चुके,जीने लगे। लालजु यह देख पूर्व निशा के रंग रस मे डूब गये,उस रस से ये जड से खडे है।आज की भाव दशा कुछ विचित्र हुई,लालजु को यू देख लाड

मोरकुटी युगल रस लीला 20 , संगिनी जु

मोरकुटी युगल लीलारस-20 जय जय श्यामाश्याम  !! मोरकुटी की पवित्र भजन स्थली पर श्यामा श्यामसुंदर जु झूलन रसक्रीड़ा में निमग्न हंस जोड़े का प्रेमगीत सुन रहे हैं।प्रकृति इस तमाम रस में नहाई हुई सुंदर कोमल प्रेम भावों में डूबती जा रही है आज जैसे नित्य नवक्रीड़ा में डूबे श्यामा श्यामसुंदर जु अति प्रसन्नचित्त हुए पहली बार कोई रसक्रीड़ा कर रहे हों।धरा अम्बर प्राकृत अप्राकृत आज एकरंग में रंगे रसान्नद हुए खिलाखिला उठे हैं।श्रीनिकुंज का कण कण महक रहा है।नित्य नव लीला धारी युगल नित्य नव रंगों में र॔गे रचे दिव्य रसप्रवाह कर रहे हैं।समग्र सृष्टि का एक भी कण अछूता नहीं इस रस से।         ऐसे दिव्यातिदिव्य रस में पगे हिमकण से रजकण में तब्दील हो चुका वह भ्रमरी के नेत्र से बहा अश्रु रसस्कित हुआ धरा में अणु रूप अंकुरित हो उठा है।धरा की नृत्य क्रीड़ा में हो रहीं नृत्य धमनियों से यह रज अणु तीव्रता से कीचड़ से उठ कर एक महकते कमल पुष्प की कली में निर्मित हो चुका है।श्यामा श्यामसुंदर जु की रसमहक से छू कर बहा यह अश्रुबिंदु युगल के रस के मद में चूर हुआ रंग राग की कृपा से प्रस्फूरित हो उठा है।        प्रेम गीत राग क

मोरकुटी युगल लीलारस-19 , संगिनी जु

मोरकुटी युगल लीलारस-19 जय जय श्यामाश्याम  !! मयूर मयूरी नृत्य क्रीड़ा से विश्रामित युगल हंस हंसिनी जोड़े के आग्रह को मान कुछ क्षण रूक जाते हैं जिसे देख वृंदा देवी अति प्रसन्न होतीं हैं और दासियों से कह वहीं मोरकुटी में तमाल वृक्ष के तले सुंदर सुडोल झूले का निर्माण करा देतीं हैं।        झूले की रेश्म की डोर और पुष्पाविंत सुंदर साज सज्जा अति कोमल बना दी गई है जिसके सब ओर गुलाब पुष्प की मनमोहक झालरें लटक रही हैं और साथ ही ऊपर गुलाबी रंग की चूनर पर चमकते सितारों जैसे पुष्पों को सजाकर श्यामा श्यामसुंदर जु के ठीक मस्तक ऊपर सुंदर गुबंदाकृति सा छोरों से झूले की डोर से बँधी है।छायारूप यह श्यामा श्यामसुंदर जु को सुख भी दे रहा है और सुंदर होने से आकर्षण भी।         पुष्पों की महक से खिंच कर पराग कण पिपासु भ्रमर झूले पर बैठना चाहते हैं पर सखियाँ दोनों ओर खड़ी चंवर ढुरा रही हैं जिससे भ्रमर वहाँ नहीं बैठ पाते और निकुंज में अन्यत्र उड़ उड़ कर श्यामा श्यामसुंदर जु की देह सुगंधी से मग्न हुए विचर रहे हैं।सखियाँ श्यामा श्यामसुंदर जु को दोनों हाथों से पकड़ ले आती हैं और उन्हें झूले पर विराजने का आग्रह करतीं