रसीलौ जुगल जौरी रसभरौ निकुंज मा बैठ्यौ है।लालजु के हाथन मा एकौ सुर्ख कछु अधिक ही खिलौ गुलाब है।जा सौ लालजु लाडलीजु के कपोलन,अधरन कू गुदगुदाय रह्यौ। या ऐसौ कह लिजौ मनुहार कियै रह्यै-लाडली जु नेक नैनन मा निहार ल्यै दैओ। लाडली जु पलकन कू उठाय या कै दायँ बायँ देखै,किंतु नैन नाय मिलावै,या सौई लाल कौ आतुरता ओरि जोर सौ बढाय रह्यी। लालजु कौ धीर कौ बाँध टूटवै कौ ह्यै रह्यौ,लाडली जु मानै ही नाय...अबकि बैर तौ लालजु बहौतहि अधीर ह्यै गयै,या नै जौर सौ लाडली जु कौ खैच ल्यी,दौनो हाथन मा लली कौ मुख लैके जबरन वा कै अधर चूम ल्यै।अली नैनन मा नैन मिलाय कै रस लूटवै लगौ,गुलाब छाड कै कमलनी पकर लयी.... रसीलौ!नैनन बतियावै। मनुहार कियै लली नैक निहारौ,लली गुलाब सौ सहलावै। दैखे इत्त उत्त दैखे ना नैनन,अतिहि लाल कू तरसावै। टूट्यौ बाँध करि लाल जौरि,खैच अधर धरि जावै। छाड गुलाब दयौ री प्यारी,कर कमलनि कौ पावै।