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Showing posts from May, 2016

तुमि जानत मोरे प्राण मनवाणी

तुमि जानत मोरे प्राण मनवाणी । मैं भी न जानूँ , जानो तुमहि । का दरद अति विरद विषद विपद दुर्गम शेष । कौ से कहू , मैं ही न जानूँ , भयो जो दरद विशेष । हिय फाटत सुनत पद तोरे जबहि करत वायु प्रवेश । निकलत प्रश्वासन संग भी पूछूँ का भयो मोरे देह देश । मौन निकलत वायु तबहिं और बढावे दरद पिय सन्देश । आवत जावत वायु बन तू , ले चल कबहुँ स्वदेश । प्राण मोरे न बसत , न बसत ध्यान अब तनिक इहँ परदेश । अबकि श्वासन रोकूँगी , तनिक बता मेरे पीर, काहे बिखरे केश । पिय का पीर भई मैं न जानूँ , पिय लिपट लिपट अब ही मर जानूँ अवशेष । मैं न जानूँ काज धरम अब काहे इहँ देस बचो  पिय बिन सब जग कलह-कालेश । तृषित पिय वियोग बिन और न प्रताड़न , न ऐसो गहन भय अब कोई शेष । --   सत्यजीत तृषित ।।

ये हुस्न तेरा ये इश्क़ मेरा रंगीन तो है बदनाम सही , श्रिया दीदी

जय राधे!! ये हुस्न तेरा ये इश्क़ मेरा रंगीन तो है बदनाम सही मुझ पर तो कई इल्ज़ाम लगे तुझ पर भी कोई इल्ज़ाम सही इस रात की निखरी रंगत को कुछ और निखर जाने दे ज़रा नज़रों को बहक जाने दे ज़रा ज़ुल्फ़ों को बिखर जाने दे ज़रा कुछ देर की ही तस्कीन सही कुछ देर का ही आराम सही जज़्बात की कलियाँ चुनना है और प्यार का तोहफ़ा देना है लोगों की निगाहें कुछ भी कहें लोगों से हमें क्या लेना है ये ख़ास त'अल्लुक़ आपस का दुनिया की नज़र में आम सही रुसवाई के डर से घबरा कर हम तर्क-ए-वफ़ा कब करते हैं जिस दिल को बसा लें पहलू में उस दिल को जुदा कब करते हैं जो हश्र हुआ है लाखों का अपना भी वही अंजाम सही ये हुस्न तेरा ये इश्क़ मेरा रंगीन तो है बदनाम सही मुझ पर तो कई इल्ज़ाम लगे तुझ पर भी कोई इल्ज़ाम सही

निकुँज गिलहरी भाग 1

यामिनि एक रसमय गिलहरी भाग 1 मेरे प्रियतम् ..... कब से रस क्षेत्र के द्वार पर हूँ इन लताओं और वृक्षों पर चढ़ उतर खोज रही हूँ किन्हीं को , किन्हें ? अरे मेरे प्राण सर्वस्व प्रियाप्रियतम । यूँ तो सभी के जाने पर भी निकुँज से बाहर नहीँ निकलती परन्तु कल न जाने क्यों प्रिया प्रियतम पीछे पीछे यहाँ बाहर आ गई और फिर रस क्षेत्र अदृश्य ही हो गया । यहाँ रस क्षेत्र (निकुँज) की गिलहरी का बाहर क्या काम , मेरे तो सब भोग और रस वहीँ है, अतः तभी से निर्जल हूँ ।यहाँ का जल ना ही तो प्यास ही बुझाता है , न ही कोई फल वैसा रसीला जैसा वहाँ प्रियतम द्वारा प्रिया संग चखा हुआ फल । जिस पात्र से वह जल पिले उसी शेष रस जल को करुणामयी सखियाँ वहाँ नदियों और सरोवर में बारी बारी डाल देती है । वहीँ तो हम वहाँ पीते है । और कभी-कभी मैं तो रात्रि में भीतर ही रहती हूँ , वहाँ उनके थाल और जलपात्र से उनका रसमय प्रसाद पा लेती हूँ । पूछती नहीँ , पूछना क्यों ? गिलहरी हूँ कोई मानवीय देह नहीँ , इतना परायापन नहीँ मुझे आता , जो उनका हुआ वह स्वतः मेरा हुआ यह ही समझ आता है । बस पहले उन्होंने उसे पाया हो , वरन् तो इंद्र अमृत पिलायें ,नहीँ

निकुँज गिलहरी भाग 7

भाग-7 राधा कान्हा को देख राधे खुद को रोक ही न पातीं हैं भाग कर तो वो गईं लेकिन नज़र मिलाने से सकुचाती हैं आकर उनके समक्ष वो बस एक ही कदम की दूरी पर रूक जाती हैं पलकें हैं झुकी उनकी कदम भी हैं रूके पर धड़कन न थम रही होंठों की जुम्बिश हाल-ए-दिल ब्यान कर जाती है।लो कान्हा बाहों में कहना तो चाहती हैं पर दम भर कर खामोश ही रह जाती हैं।हैं अद्भुत सुंदरता की मूर्त पर सांवरे के प्रेम बिन खुद को अधूरा ही पातीं हैं।कान्हा भी देख राधा को उनमें खो ही जाते हैं वंशी बजाते बजाते वो बजाना ही भूल जाते हैं।निरख राधे की छवि निराली उन पर उनसे ही वो भी थम जाते हैं।करते रहते श्रृंगार रसपान वो निरख निरख ना निरख पाते हैं।राधा की व्याकुलता पर अश्रुजल भर आँखों में वो राधे के चरणों का अभिषेक कर जाते हैं।बढ़ते हैं जब कर छूने को तो पहले तो कांप ही जाते फिर सकुचाते से रूक ही जाते हैं।सखियां हैं अपार यहाँ सोच ये राधा माधव मुश्किल से दूरी बना पाते हैं।छूना ना मोहन अभी इशारे से ही एक दूजे को समझाते हैं।बढ़ते श्याम के हाथों को कटि में राधा अंगों को ढक रही और छोड़ मोहन की राह को वो थोड़ा सा उनसे पीछे हटीं।अब भी श्याम क

निकुँज गिलहरी भाग 6

भाग-6 समझ नहीं आ रहा यहाँ देखुं या वहाँ।चंचल मन हर और भाग रहा है।सब देखना चाहता है।इधर प्रिया जु जो वेणु धुन में मुग्ध हुईं शीघ्र अति शीघ्र श्रृंगार पूर्ण हो जाए ऐसा चाहती हैं उधर कृष्ण के आगमन से पूर्व वंशी का मधुर राग आकर्षित कर रहा है और अब ये ये आखिर हो क्या रहा है वहाँ तनिक चल कर देखना तो होगा ही अन्यथा ये बेचैन मन में अचकची सी ही रहेगी। आहा।। अरी ये तो मैं पगली भूल ही बैठी थी।वैशाख माह है ना।तो चंदनयुक्त श्रृंगार तभी तो हो रहा।हर और चंदन ही बिछा और महका रहा है निकुंज को।और ये यहां एक मोहक नोका। हाँ नोका ही तो है।अरी आज तो प्रियाप्रियतम को जलविहार कराने की तैयारियाँ हो रही हैं। अरे वाह!क्या नाव सजी है।अत्यंत रंग बिरंगे पुष्पों से लदी है।महक ऐसी कि पूरी यमुना इठला उठी है।तरह तरह की लताएं कलियों की मनभावनी लड़ियां जब यमुना जु के जल को स्पर्श करती हैं तो परस्पर इठलाती  हैं।प्रिया प्रियतम के आगमन में पवन को महकाती हैं। थोड़ा और पास गई तो सब सखियां सजावट में लगी हैं। एक विशाल नोका बत्तख मुंही ऊंची बड़ी सुंदर साज सजावट जिस पर सखियां पूरे तन मन से सर्वस्व न्यौछावर कर रही हैं।नोका

निकुँज गिलहरी भाग 5

भाग-5 प्रियतम!!!! हाँ प्रियतम ही तो हैं मुझे तो श्याम ही दिख रहे हैं श्यामा जु में वही तो हैं उनकी छवि श्यामा जु में झलकती है और श्यामा जु को हर पल संग का एहसास दिलाती है।खुद वो अपना मुख जब यमुना जी के निश्चल नीर में देखती हैं तो वहाँ श्यामसुंदर ही नज़र आते हैं।यही हाल प्रियतम का होता है वो हर कहीं हर सखी में भी श्यामा जु को ही देखते हैं।श्यामा जी तो अभी भी उन्हें ही देख रही हैं। स्नान की सब सामग्री तैयार है हल्दी केसर चंदन मिश्रित उबटन श्याम ही तो हैं दूध दही तेल सब में श्याम ही हैं महकते।यमुना जी का श्यामल जल श्याम ही हैं।किशोरी जु के श्याम  केश तन को ढकते हुए वही तो हैं। सखियां राधे जु को उबटन व तेल लगाती हैं आहा।।जैसे गौरवर्ण पे पीताम्बर पहना दिया हो कुछ काल तक सखियां उन्हें युंही सेवा प्रदान करती हैं लेकिन प्रिया जु को कोई होश नहीं।उनकी देह से आ रही महक से मैं भी मंत्रमुग्ध हुई जाती हूँ ।यमुना जल में घुल रहा प्रिया जु का देह रस सर्वत्र फैल रहा है हवाएं महकने लगती हैं। इन हवाओं का असर तो देखो ये प्रियतम को ज्यों संदेस दे रही हों उकसाती हों उनको बुला रही हों।प्रियतम जैसे जान

निकुँज गिलहरी भाग 4

भाग-4 अहा।। क्या हुआ होगा ऐसा हाए सोच कर ही दम भरती हूँ ऐसे सुखद क्षण!!! अरी देख लेने मात्र से मेरी ये हालत जिसका तुम तो अनुमान ही लगा सकोगी तो फिर मेरी प्यारी जु की दशा तो स्वभाविक है मैं तो महसूस कर पाई किशोरी जु को तो विश्वेशवर ने -----हाए-----कैसे कहूँ।होंठों से बात निकलती नहीं कि कंपित हो जाते हैं साँसें थम जाती हैं धड़कन तरंगायित हो उठती है सपन्दन सिहरन ताप शीतलता सब एक साथ!!! अद्भुत सा खिंचाव एक होने का सा और छूटते ही स्वेद कण और देह में मीठा सा गहराई में कहीं ठंडक भरा भीना भीना सच कहूँ दो होने के कारण तड़प का दर्द असहनीय सा एहसास नम आँखें फिर से वही पुकार वही बेचैनी दो होने से मरना भी गंवारा नहीं एक होकर समा कर सिमटकर भीतर ही खत्म ही हो जाती तो----- एक हुए ही क्यों हुए तो अब दो क्यों कुछ ही क्षणों में अश्रुपात---- न जाओ न जाओ प्रियतम तुम बिन मुरझा रही तेरी प्रेम बेल प्रियतम तेरे न होने के मात्र एहसास से टूट रही जीवन डोर प्रियतम तुम जुदा हुए कि जिंदगानी ज्यों हमसे रूठ ही गई प्रियतम कब होगा फिर से मधुर मिलन प्रियतम उस घड़ी तक होगी अनवरत असहनीय तड़प प्रियतम हा ----------

निकुँज गिलहरी भाग 3

भाग-3 आ गईं।आ गईं।श्यामा जु आ गईं। मेरी श्यामा जु मेरी----मेर---श्यामा जु----प्यारी श्या ---कहते कहते कंठ भर आया।अश्रु जल बिन्दु से खुद को भिगो रही।अपनी ही देह को जैसे पापमुक्त होने को धो रही हो।कोई पगली सी रसभरी श्यामाश्याम प्रिया।। देखती है प्रिया जु पधार गई हैं।सब सखियां उनके स्नान की तैयारियों में जुटी हैं और ये मन ही मन सोच ही रही थी कि क्या कैसे कुछ सेवा करूँ कि श्यामा जु की कृपादृष्टि मुझ पर पड़े।बस एक बार वो मुझे देखकर चाहे नज़र ही फेर लें।धीरे धीरे सब सखियों में से गुजरती हुई ये आगे बढ़ने का प्रयास करने लगी है और एक सखी के पल्लु की ओट से प्रिया जु की अंग कांति को एक नज़र देखते ही फिर से इस पर जादू सा होने लगता है कि ये बड़ी मुश्किल से खुद को वहां से बाहर निकाल पाती है। अरी ।। ऐसा क्या देख लिया। सखियां जो किशोरी जु को घेरे खड़ी हैं ना उनके गहने उतार रही हैं जिन्हें देख देख श्यामा जु अपना आपा खो रही हैं कि यहाँ यहाँ और यहाँ श्यामसुंदर ने बीती रात उन्हें छुआ था और कुछ ऐसे ही अदा से उनके गहने प्रेम से एक एक कर उनकी सुकोमल देह से अलग किए थे।प्यारी जु हर बार की तरह अभी भी अपने ही

निकुँज गिलहरी भाग 2

भाग-2 हाँ,फिर भी ये बेचैनी क्यों? अरी बेचैन तो होना ही होगा ना।नहीं तो मिलन संभव ही नहीं और इस लिए भी कि फिर से मदमस्त हो जाऊँ तो रस क्षेत्र की राह ही न भूल जाए।प्रिया जु की पायल की रूनझुन और हंसी की जो संगीतमय ध्वनि है वो जो मुग्ध कर रही है मदहोश कर रही है सतर्क रहना होगा। इतने में सब सखियों संग प्रिया जु नज़र आने लगती हैं अकेली हैं प्रियतम कहाँ हैं जहाँ प्रिया वहीं मोहन तो आते ही होंगे।जैसे जैसे किशोरी जु पास आ रही हैं वैसे वैसे उनकी छुअन से हवा में सुगंधित कण घुल रहे हैं जो हर एक श्वास के साथ मुझमें समाते जा रहे हैं और बेकाबू होती जा रही हूँ नहीं रोक पाती हूँ ,खो ही गई फिर से।पड़ी हूँ मदहोश सी धरा पर।न जागी न सोई । अरे,पर ये क्या,बेहोशी में भी होश।। ये तो अचानक से उठ खड़ी हुई। रस क्षेत्र की एक किंकरी है ये तो।आकर प्रिया जु की राह ताकते तकते कंकर उठाने लगी कि कहीं सुकोमल राधे जु के पग में ना चुभ जाएं।चुग रही है राह के एक एक कांटे को भी ताकि किसी भी सखी के पैर में न लग जाए।मतवाली हुई भूल ही बैठी है अपने असली स्वरूप को। श्यामा जु के आगे आते कदमों की आहट से ये राह से हट जाती है।नज़