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Showing posts from January, 2019

प्रियाहियमणि - पियचरन , सन्गिनी जू

*प्रियाहियमणि* - पियचरन "धन्य सुहाग अनुराग री तेरौ तू सर्वोपरि राधे जू रानी। नख सिख अंग अंग बानी प्रीतम प्रान समानी रसिक किसोर सुरति सुख दानी।। को जानें वरने बपुरा कवि अद्भुत छवि नहिं जात बखानी। श्री बिहारीदासि पिय सौं रति मानी मैं जानी सयानी तोहिं सब निसि सुख सिरानी।।" श्रीकुंजबिहारी श्रीहरिदास  ! जयजय...सखी...पियहियमणि प्यारी जू चरण ...तो प्यारी जू हिय कौ सिंगार...अहा...परस्पर कौ खेल सखी री... परस्पर सुखदानि...अनुराग रसखानि...दोऊ युगलवर... ... अगर प्यारे जू के हिय में प्यारी चरन विराजित सुसज्जित हैं तो प्यारी जू के हियो कौ सिंगार भी पियचरन री... प्रियतम प्यारी जू कौ नाऊं जपै निसिभोर वेणु सौं...तो प्यारी जू कौ तो प्रत्येक रोम-रोम बांसुरी री...जो प्रतिछन प्यारे प्यारे जपै...पिय कौ रोम-रोम जो प्यारी रूप निहारन हेतु नयन भये...तो प्यारी कौ प्रतिलोम-विलोम...आलिंगन सखी री...बाहु पसार प्यारी पिय कौ अंक में भरि भरि रह्वै...नयन मूँदे तो पिय अकुलावै...पिय की दृष्टि जो प्यारी नयनन तें समाई...पिय निहारे तो प्यारी लजावै...नयन झुकावै...तो पिय प्यारी सिंगार निहार हियपाश में फंस जाव

बेनी श्रृंगार , स्ँगिनी जू

*बेनी श्रृंगार* "बेनी गूँथि कहा कोऊ जानें मेरी सी तेरी सौं... बिच बिच फूल सेत पीत राते को करि सकै एरी सौं..." सखी हिय की एकहूँ लालसा...प्यारीपिय जू सदैव मिले भरेपुरे रहें...आरसी सम्मुख निहार रही...बेनी गूँथ रही प्रिया जू की... पर तृषित चकोरवत् निहारते निहारते श्यामसुंदर सखी सौं प्यारी जू बेनी गूँथन सेवा लेनौ चाह रहे... सखी अतर्गिंनी...प्यारीपिय हिय जू की रसीली जैसे सब जानती...और पियहिय सूखानुरूप लीला निवारण करती उन्हें रसमुदित करती... मात्र नेत्रभृकुटि की किंचित सी थिरकन से सखी प्रियतम को प्यारी जू की बेनी को निहारते रहने को कहती और नयन मूँद प्यारी जू की मुग्धता को अति मुग्ध रसवर्धन हेतु मौन रहने को भी... प्रियतम सखी की बात मान जैसे ही प्यारी जू के अंतर्मन के भावों को पढ़ना आरम्भ कर बेनी को निहारते तब...अहा... प्रतिबिम्ब में प्यारी जू सखी के करों में थामे श्यामल केशों को निहार रहीं...सखी के करों में दो ही लड़ में केश संवरने लगे...सुलझे हुए...बस... एक होने को...आह... परंतु इस एकरसता में रसपुलक हेतु सखी दो सुलझे हुए केश लड़ों को तीन भागों में विभाजित कर देती... तीसरा लड़