*प्रियाहियमणि* - पियचरन "धन्य सुहाग अनुराग री तेरौ तू सर्वोपरि राधे जू रानी। नख सिख अंग अंग बानी प्रीतम प्रान समानी रसिक किसोर सुरति सुख दानी।। को जानें वरने बपुरा कवि अद्भुत छवि नहिं जात बखानी। श्री बिहारीदासि पिय सौं रति मानी मैं जानी सयानी तोहिं सब निसि सुख सिरानी।।" श्रीकुंजबिहारी श्रीहरिदास ! जयजय...सखी...पियहियमणि प्यारी जू चरण ...तो प्यारी जू हिय कौ सिंगार...अहा...परस्पर कौ खेल सखी री... परस्पर सुखदानि...अनुराग रसखानि...दोऊ युगलवर... ... अगर प्यारे जू के हिय में प्यारी चरन विराजित सुसज्जित हैं तो प्यारी जू के हियो कौ सिंगार भी पियचरन री... प्रियतम प्यारी जू कौ नाऊं जपै निसिभोर वेणु सौं...तो प्यारी जू कौ तो प्रत्येक रोम-रोम बांसुरी री...जो प्रतिछन प्यारे प्यारे जपै...पिय कौ रोम-रोम जो प्यारी रूप निहारन हेतु नयन भये...तो प्यारी कौ प्रतिलोम-विलोम...आलिंगन सखी री...बाहु पसार प्यारी पिय कौ अंक में भरि भरि रह्वै...नयन मूँदे तो पिय अकुलावै...पिय की दृष्टि जो प्यारी नयनन तें समाई...पिय निहारे तो प्यारी लजावै...नयन झुकावै...तो पिय प्यारी सिंगार निहार हियपाश में फंस जाव