पुनर्मिलन ....
मिलन से गहरा है
पुनर्मिलन
विरह की धारा मध्या
बहता पथ हो चली
पुनर्मिलन एक वर्षा
पुनर्मिलन एक तृषा
उस विरह से इस मिलन
तक अविरल बहती व्याकुलता
पुन:-पुन : संयोग कैसे
पुन:- पुन: वियोग से
पुन: दृष्टि
पुन: स्पर्श
पुन: वेदना
पुन: रुदन
संभव हो पुन:
तो नि:शब्द पुन:
निरातीत ने खोदा
अतीत पुन:
वहीं आवेग
वहीं गोता
वहीं बहाव
पुन: !!
कैसे हो फिर वही ...
पुन: निवेदन !!
पुन: विनोद ....
पुनर्रावृत्ति सुस्वप्न की !
पुन: सुर्योदय
अवसर पर
उडते पंख पुन:-पुन:
चाहती है पिया तुम्हें
लो मैं आ गई ...
बस !
अब थम जाना यहीँ ....
कम्पन -रूदन - स्पंदन
वो प्रथम मिलन सा .....
पुन: वही दोहरा दो
- सत्यजीत "तृषित"
Comments
Post a Comment