सूरदासजी का प्रयाण-काल जब निकट आया, तब गोस्वामी विट्ठलनाथजी ने पूछा -- सूरदास ! मन की वृत्ति कहाँ है ?
सूरदासजी ने गाया --
बलि बलि बलि बलि कुँवरि राधिके,
स्याम सुन्दर जिन सौं रति मानी।
पद का भाव यह है कि ' धन्य राधिके ! समस्त जगत, समस्त ब्रह्माण्ड को आनन्द देनेवालेको भी तुमसे आनन्द मिलता है। ' आगे कहते हैं कि ' तुमलोगों का रहस्य बड़ा ही विलक्षण है। श्यामसुन्दर पीताम्बर इसलिए पहनते हैं की उसे देख-देखकर तुम्हारी स्मृति में डूबते रहें और तुम नीली साड़ी इसलिए पहनती हो कि श्यामसुन्दर की स्मृति में ही डूबी रहो। ' अंतिम क्षण में पूछ गया -- ' सूरदास ! नेत्र की वृत्ति कहाँ है ?
उसपर गाया --
खंजन नैन सुरँग रस माते।
यही पद गाकर उन्होंने प्राण छोड़ दिये। ऐसी ही मृत्यु श्रीकृष्ण हम सबको दें। जय राधे...!!!
॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...
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