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मैं कैसी हूँ ?? मैं ना जानूँ ..... । कविता । 21-1-2016

मैं कैसी हूँ ??
मैं ना जानूँ .....

उन्हें पुलकित देख
समझती हूँ !
वें मुस्कुराते है
सो भली ही हूँ !!!

मैं जानूं उन्हें
और सब भी जानूँ उन्हें

कहे तो हिम बनूं
कहे तो जल बन बह जाऊँ
या पवन में नमी सी बन घुल जाऊँ

वो खिलते रहे सदा
ऐसी कुछ धारा बन जाऊँ

कोई कहता ज्योत्स्ना हूँ उनकी !
सुना मैंने तो सुख मिला
चाँद को घेरे चाँदनी हूँ उनकी !

मैं हूँ चाँदनी उनकी
ज्योत्स्ना !
मेरी दमक नहीँ मुझमेँ
यें है मेरे प्रियतम्
के संग की विभूति
बिन चन्द्र मैं नही चाँदनी
बिन ज्योत्स्ना होती मावस
काजल छाँव सी
उनकी हूँ , सो निरखती हूँ
समिप जितने हो , उतनी खिलती हूँ
जब छु लेते है तो
पुलक पुलक सी
थम सी रहती हूँ
या उनकी महक संग बहती हूँ
तब वहीँ सब जाने ,
ना जाने किस आवेश में होती हूँ !!

कोई कहे वें सुर्ख़ पुष्प से
और मैं महक उनकी
सच कहूँ तो महक भी तो
पुष्प से ही सजी
महक हूँ तो भी
उन्हीं तक , सिमटी !
मुझसे न पूछो कौन हूँ ....
सब है वहीँ , मैं नहीँ हूँ कहीँ
बस वहीँ , बस वहीँ , बस वही ।
--- तृषित ।।

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