प्रेम धन बिनु व्यर्थ दरिद्र जीवन । दासकरि वेतन मोरे देह प्रेम धन ।
रसान्तरावेश हैल वियोग स्फुरण । उद्वेग-विषाद-दैन्य करे प्रलपन ।।
हे मेरे प्रियतम् । हे कृष्ण । आपके प्रेमधन के बिना मेरा जीवन व्यर्थ ही है , प्रियतम् । कंगाल सा ही है । आप मुझे अपना दास बना लीजिये नाथ । और वेतन में मुझे अपना प्रेम ही दीजिये । इतना कह कर महाप्रभु मधुर रस में आविष्ट हो उठे और उन्हें श्री कृष्ण के वियोग से स्फुरण हो होने लगा । राधभावावेश में उद्वेग , विषाद और दैन्यपूर्वक प्रलाप करने लगें ।
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