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Showing posts from November, 2018

दीवारी मंगलाचार , sangini joo संगिनी जू

*दीवारी मंगलाचार* आज दिवारी मंगल चार। ब्रजजुवति मिलि मंगल गावत, चौक पुरावत नन्द द्वार। मधुमेवा पकवान मिठाई भरि भरि लिने कंचन थार। 'परमानंद' दास को ठाकुर भूखन बसन रसाल। दीपोत्सव के पहले बीती रात्रि सखी श्यामाश्याम जु के चरण दर्शन पाए खुद को बड़भागी मानती है।उनकी सुंदर छवि को निहारती उसके नेत्रों से अश्रु बह निकलते हैं कि मुझ दासी पर श्यामाश्याम जु की ऐसी कृपा क्यों? अत्यधिक क्षोभित स्वयं के सौभाग्य पर चिंतन करती सखी श्यामा श्यामसुंदर जु की कृपा उपकार का आभार तो व्यक्त करती है और साथ ही उनसे प्रार्थना करती है कि प्रभु इस अकिंचन अपराधिन से कभी कोई चूक हो जाए तो क्षमा कर डांट फटकार से सही राह जरूर दिखाना।सगरी रैन उसकी प्रियाप्रियतम जु की यादों में व अपने को टटोलने में आँखों में ही बीत जाती है। अति भोर में यमुना जु के तट पर जा बैठती है।यमुना जु से बतियाती एक ही बात दौहरा रही है सखी जु कब मैं लायक थी और कब प्रभु कृपा किए कुछ नहीं जानती।अधीरता वश यमुना जु के शीतल जल में उतर जाती है और प्रार्थना कर यमुना जु से अपने सब पाप विकार हर लेने को कहती है।आज दीपोत्सव पर ज्यों अपने भीतर की