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वे प्रियतम श्याम-श्याम प्राणधन प्यारे -- श्रिया

वे प्रियतम श्याम-श्याम प्राणधन प्यारे।
रहते नित मेरे पास, न होते न्यारे।।
खाने-पीने-सोने-जगने के सारे।
करते वे मेरे साथ कर्म सन, ध्रुव-तारे।।
वे घुले-मिले रहते हैं मुझमें प्रतिपाल।
जो देख न पाए पलभर, होते व्याकुल😭
मेरा सुख ही है उनका सुख अति निर्मल।
वे रहते नित्य निमग्न उसी में अविचल।।
यों नित्य पास रहते भी मैं खो जाती।
खोकर उनको फिर मैं दिखाई हो जाती।।
रोतीं 😭, विलाप करती, पर उन्हें न पाती।
मैं नित्य प्राप्त उन प्रियतम-हित विलखाती।।
लगता, वे रहते दूर, पास माही आते।
मुझ प्रेमहीन को क्यों वे पास बुलाते।।
मैं रोती रहती नित्य, न वे लाख पाते ।
वे नहीं इसी से ख़ुद संयोग लगाते।
वे हँसते मुझको देख भूल में भारी।
लख, नित्य मिलन में अमिलन-गति हिय-हारी।।
कहते ---'देखो, मैं पास तुम्हारे प्यारी!
इस प्रेम-दशा विचित्र पर मैं बलिहारी'।।
सुधि होती, खुलते नेत्र, चेत हो जाता।
रस-स्तोत्र मधुर में दुःख सभी बह जाता।।
बढ़ता रस का अति वेग, परम सुख छाता।
प्रियको नित पाकर साथ, तृषित हर्ष समाता।।

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