Skip to main content

कृष्ण विरह को "विहमृत" कहते हैं , सलोनी जी

कृष्ण विरह को "विहमृत" कहते हैं
क्योंकि इस पीड़ा में
इस दर्द में
इस तड़पन में जो आनन्द है
उसके आगे करोड़ों ब्रह्मांड भी तुच्छ हैं
आनंद भी कैसा
जैसे प्रिए के हाथों
माखन मिसरी को चखने के जैसा
हर दम ऐसी आस
जैसे हों वो पास पास
एक ऐसा एहसास कि
पिया ने अभी अभी छुआ
और अभी जैसे
बाहों में भर आलिंगन किया
फिर वो पास न होकर भी पास
उनकी ही छुअन
उनकी ही महक
उनके होने का आभास हर क्षण
कभी मस्ती और आनंद
तो कभी एक और वही एहसास की प्यास
एक तड़प
तड़प कैसी
कि कोई भी और छू जाए तो
अछूत से हो जाओ
उनके एहसास को जिंदा रखने की झुंझलाहट
कोई बात भी करे तो मन नहींहै
और अगर की भी तो खुद नहीं
जैसे पिया सा ही कोई नटखट मस्ती भरा जवाब
रोए तो खुद ही लेकिन हसे तो
लगे खुद नहीं
पिया ही
बस पिया
पिया पिया
बस पिया ही

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...